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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ढोरों-जैसे हैं। हिन्दुओंने इनका तिरस्कार करके एक पाप किया है। आप ऐसा रुख रखें कि ऐसा आलीशान मकान बन गया है, इस कारण आप उनसे कोई ईर्ष्या न करें। यदि ऐसा मकान वणिक् छात्रावासका हो तो आप ईर्ष्या करें। मैं यह बात स्वीकार करता हूँ कि एक भी ऐसा मकान नहीं होना चाहिए जो हिन्दुस्तानकी जनताको, उसकी गरीबीको शोभा न दे। इससे भी अधिक सुन्दर मकान अनेक हैं जो अन्य वर्णोंके बालकोंके उपयोगमें आते हैं। लेकिन अन्त्यजोंको ऐसे मकानोंको इस्तेमाल करनेका अधिकार नहीं है, ऐसा भाव आपके मनमें कदापि न आना चाहिए। तथापि हमें अन्त्यजोंको भी समझाना चाहिए। मैं तो इसकी चर्चा यहाँ कर ही रहा हूँ; लेकिन यदि गोधराका कोई धनी इस मकानको ले ले तो अच्छा हो और तब हम, जो गरीबोंको शोभा दे, ऐसे किसी अन्य मकानमें चले जायेंगे। तबतक मामा इससे काम लें।

आज मैं अन्त्यजोंके बाड़ेमें तीन जगह गया था। वहाँ मैंने मनुष्य नहीं वरन् पशु देखे। हम इनसे बात करने बैठे तो ये हमें अपनेसे भिन्न प्राणी लगे। परन्तु ये भी प्रेमको समझते हैं। इनकी इस दयनीय स्थितिके लिए हम लोग उत्तरदायी नहीं हैं तो और कौन है? मेरी दृष्टिमें स्वराज्य इन लोगोंकी सेवाकी तुलनामें तुच्छ वस्तु है। अन्त्यजोंकी सेवासे स्वराज्य मिलेगा, इस उद्देश्यसे मैंने यह सेवा आरम्भ नहीं की है। तीस वर्ष पहले जब मैं दक्षिण आफ्रिकामें था और जब स्वराज्यकी बात भी नहीं थी तबसे मैं अपने अन्त्यज-सेवा सम्बन्धी विचार प्रकट करता आ रहा हूँ। आजकल हम हिन्दू धर्मकी रक्षा नहीं कर रहे हैं; उसका नाश कर रहे हैं और मैं चाहता हूँ कि उसे इस नाशसे बचानेके लिए आप यह सेवा-कार्य हाथमें लें। आप ऐसा समझें कि आप लोग जो यहाँ आये हैं, यहाँ आकर अपवित्र नहीं, बल्कि पवित्र हुए हैं। मुझे तो यह कहनेमें भी कोई संकोच नहीं कि जहाँ-जहाँ अन्त्यज-सेवा है, जहाँ-जहाँ अन्त्यज-पाठशाला है, जहाँ-जहाँ अन्त्यज आश्रम हैं, वहाँ-वहाँ तीर्थ हैं। कारण, तीर्थ वहीं होता है जहाँ हम अपने पापोंका परिमार्जन करके भवसागरसे तरनेके लिए तैयार होते हैं। माँ-बाप क्यों तीर्थ-रूप हैं? गुरु क्यों तीर्थ-रूप हैं? यदि हम हृदयसे सेवा करते हैं तो पवित्र बनते हैं। आप इनसे छू गये हैं, इसलिए आपको नहाना चाहिए, ऐसा आप न मानें। यदि आपको पहलेसे मालूम न होता तो क्या आप कह सकते थे कि ये संवाद सुनानेवाले बालक अन्त्यज हैं? यदि हम इन बालकोंपर पूरी मेहनत करें तो ये बालक हम लोगोंसे आगे बढ़ जायेंगे। भंगीके बालकोंमें सद्विचार नहीं आ सकते, मैं ऐसा नहीं मानता। मैं अनुभवसे कहता हूँ कि यदि हम प्रयास करें तो उनके हृदयमें सद्विचार अवश्य आयेंगे। आप सब लोगोंसे, जो यहाँ आये हैं प्रार्थना करता हूँ कि आप इस अवसरको अन्तिम अवसर न मान लें; आप समय-समयपर यहाँ आकर सहायता देते रहें।

यहाँ अन्त्यज सेवा-मण्डल है, इसके अस्तित्वके लिए हम इन्दुलालके[१]आभारी हैं। इन्होंने भारी सेवा की है। वे जेलमें भी इसीका विचार करते थे। यदि उन्होंने उत्साह-अतिरेकमें कुछ ऐसा काम किया हो जो सम्भव है हमको अच्छा न लगे, तो हमें

  1. इन्दुलाल कन्हैयालाल पाशिक।