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भाषण: गोधराकी सार्वजनिक सभामें

उसपर ध्यान नहीं देना चाहिए। अमृतलाल[१]अपना प्रवास छोड़कर आज यहाँ आये हैं। अब वे ढेढ़ों, भंगियों और भीलोंके गुरु बन गये हैं। इन्दुलालने अन्त्यज सेवा-मण्डल छोड़नेका विचार किया तब मैंने उनसे कहा था, मैं उसे विद्यापीठको सौंप दूँगा। अमृतलालने कहा कि यह संस्था तो रहनी चाहिए। अब इसका बोझ उन्होंने स्वयं उठा लिया है। लेकिन एक मनुष्य कितना बोझ उठा सकता है? आप इनकी मदद भी करें। अन्त्यज-सेवा-मण्डलका कार्य बहुत बड़ा है। वह गुजरातके अन्त्यजोंका नक्शा तैयार कर रहा है। गोधराने एक भी पैसा दिया हो, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। यदि आपके हृदयमें ईश्वर बसता है तो आप भाई अमृतलाल अथवा मामाको पैसा दें। ऐसा आप समझ-बूझकर करें।

[ गुजरातीसे ]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७

४०९. भाषण: गोधराकी सार्वजनिक सभामें

२ जनवरी, १९२५

अन्त्यजोंको जन्मसे अस्पृश्य माननेमें धर्म नहीं; बल्कि अधर्म है। मेरी दृढ़ मान्यता है कि मुझे सनातनी न माननेवाले लोग अज्ञानी हैं। आप कहेंगे कि अनेक पण्डित भी अस्पृश्यताका समर्थन करते हैं। लेकिन उनपर अखा भगतकी यह उक्ति लागू होती है 'बिन विचार विद्या मिथ्या'। हिन्दू धर्ममें एक ही तरहकी अस्पृश्यता है, असन्तोंसे दूर रहने की; दुष्ट, पाखण्डी लम्पट और व्यभिचारीसे दूर रहने की। उन्हें आप अस्पृश्य मानकर उनसे दूर भागें; लेकिन जो व्यक्ति आपकी सेवा करे, आपका मैला साफ करे, आपके लिए चमड़ा तैयार करे और आपकी खेती [ की सिंचाई ] के लिए चरसा तैयार करे, उसे क्या आप अस्पृश्य मानेंगे? यह तो हिन्दू धर्म नहीं, पाखण्ड है। यदि हिन्दूधर्म यह कहता हो कि ये लोग अस्पृश्य हैं तो मैं हिन्दूधर्मका त्याग करने की सलाह दूँगा। अस्पृश्यताकी यह प्रवृत्ति भ्रम मात्र है; यदि आपमें दयाभाव हो तो आप भंगीका अज्ञान देखकर रो उठें और आपके मन में कर्त्तव्य पालनकी भावना जाग्रत हो। आप मेरा त्याग करें, आप मुझे जंगलमें भगा दें और मैं पागल हो जाऊँ तो इसमें दोष मेरा है या आपका? उसी तरह बेचारे भंगी और ढेढ़ दीन-हीन और कंगाल हो गये हैं, उनमें अज्ञानकी कोई हद नहीं है और वे व्यसनी हैं तो इसमें उनका दोष है या आपका दोष है? यह आपका ही दोष है और मैं चाहता हूँ कि आप इस दोषका त्यागकर शुद्ध बनें।

मुझे ईश्वरने यरवदा जेलमें भयंकर बीमारीसे बचाकर आपकी सेवाके लिए मुक्त किया, इसमें मुझे तो उसका कोई बहुत बड़ा हेतु दिखाई देता है और वह हेतु यह है कि मैं आपमें आत्म-विश्वासका संचार करूँ, जेलमें अपने गंभीर चिन्तनके परिणाम स्वरूप बने अपने विचारको आपके समक्ष रखूँ कि तीन शर्तों--चरखा, हिन्दु-मुस्लिम

  1. अमृतलाल विट्ठलभाई ठक्कर।