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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एकता और अस्पृश्यताष-निवारण---में ही स्वराज्य निहित है। मैंने चरखेकी बात सबसे पहले रखी है, उसका कारण यह है कि उपर्युक्त तीनों बातोंमें केवल चरखेकी बात ही ऐसी है जिसके सम्बंन्धमें हममें अविश्वास है और दूसरा कारण यह है कि चरखा ही एक ऐसी वस्तु है जो हर रोज हमसे खरा काम माँगता है। यदि मैं रोज हिन्दू-मुस्लिम एकता अथवा अस्पृश्यता-निवारणके लिए आधा घंटा काम करना चाहूँ तो मेरी समझमें नहीं आयेगा कि क्या करूँ। लेकिन आधा घंटा चरखा चलाने में प्रत्यक्ष काम होता है। यह जड़पदार्थ है; लेकिन इसमें निहित शक्ति अमोघ है। इसको चलानेके लिए आप सब तैयार हो जायें, ऐसी मेरी इच्छा है। खादीका कपड़ा आपको मोटा लगता है। आपका कहना है कि खादी तो चुभती है। इसका अर्थ यह हुआ कि आपको यह देश चुभता है और जिसे देश चुभता है, वह स्वराज्य क्या प्राप्त करेगा? तिलक महाराज कहा करते थे कि जब लोग जलवायु-परिवर्तनके लिए विदेश जानेकी बात करते हैं तब मुझे तो दुःख होता है। ईश्वरने मुझे यहाँ उत्पन्न किया है तो क्या उसने मुझे मेरे लिए इसी जलवायुमें स्वस्थ बने रहने की बात न सोची होगी? इंग्लैंडमें अत्यधिक ठण्ड होनेके बावजूद क्या अंग्रेज इंग्लैंड छोड़कर भागते हैं? घरमें सिगड़ी सुलगाते हैं, गरम कपड़े पहनते हैं और ठण्डसे बचनेके लिए अनेक उपाय करते हैं। लेकिन जिनके पास करोड़ों रुपये हैं, वे लोग करें तो क्या करें? वे जलवायु-परिवर्तनका विचार करते हैं। मैं आपसे कहता हूँ कि यह उनका पाखण्ड है। उसी तरह हम यहाँकी बनी, महँगी-सस्ती, अच्छी-बुरी, मोटी-पतली खादी पहनें, इसीमें हमारी स्वदेश-भक्ति है और नहीं तो स्वदेशका नाम लेना निरर्थक है। क्या कोई माँ अपने कुरूप पुत्रको छोड़ दूसरीके अच्छे बच्चे को गोदमें लेगी? बालकके प्रति माँके हृदयमें ईश्वरने जो प्रेम और ममत्व पैदा किया है, मेरी इच्छा है कि वही प्रेम और ममत्व आपके हृदयमें हिन्दुस्तानके लिए हो, हिन्दुस्तानमें पैदा होनेवाले अन्नके लिए हो, खादीके लिए हो। यदि गोधराका प्रत्येक व्यक्ति पाँच रुपये मूल्यकी खादी तैयार करे तो २५००० की आबादीमें कितने रुपयोंकी बचत हो? यदि आप यह रुपया बचा लें तो गोधराके निवासी अधिक खुशहाल हो जायें। उससे आपका तेज बढ़ेगा और आपका देश-प्रेम छलक उठेगा। चरखा चलाना ही एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसमें स्त्री-पुरुष और बालक, गरीब और अमीर सब समान योग दे सकते हैं तथा जिससे भारी फलकी उपलब्धि हो सकती है। 'बूँद-बूँदसे सरोवर भरता है' इस कहावतपर आप विचार करें और प्रति व्यक्ति दो हजार गज सूत देकर स्वराज्य रूपी सरोवरको भरते रहें। वामनराव विधान-सभामें जायें और वहाँ जाकर सरकारको आँखें दिखायें तो क्या आप समझते हैं, इससे आपको स्वराज्य मिल जायेगा। मैं तो कहता हूँ कि आप विधान-सभामें जायें तो वहाँ भी सूत और खादीकी ही पुकार करें। लेकिन यदि आप विदेशी कपड़ेका बहिष्कार न कर सकें तो चाहे वल्लभभाई अथवा वामनराव-जैसे पाँच हजार लोग विधान सभामें जायें, पर इससे स्वराज्य नहीं मिलेगा।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, ११-१-१९२५