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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पर्याप्त विचार कर सकेंगे। मेरी सलाह है कि विषय समितिकी बैठकके लिए पर्याप्त समय रखा जाये। प्रस्तावोंकी रचनामें अपने कर्त्तव्योंपर विशेष जोर दिया जाये तो हम अधिक सफल होंगे। इसलिए मैं चाहता हूँ कि प्रस्ताव इस बातको ध्यानमें रखकर ही तैयार किये जायें।

समय बचानेका एक मार्ग तो मैं सुझा दूँ। आप स्वागत हृदयसे करें। इससे आपकी समझमें आ जायेगा कि बाह्य स्वागतकी कोई आवश्यकता नहीं है।

जुलूस आदिमें समय लगाना तो हमें जो असली कार्य करना है उसमें चोरी करनेके समान होगा। दो दिनमें छब्बीस लाख लोगोंकी सेवाका कार्यक्रम बनाना है, आपको यह बात न भूलनी चाहिए। हजारों स्त्री-पुरुष इकट्ठे होंगे, उनको संतोष देनेके लिए कितनी ही बाह्य वस्तुओंकी आवश्यकता होगी। इसके लिए तो प्रदर्शनी-जैसी दूसरी कोई वस्तु नहीं है, यह हम बेलगाँवमें देख चुके हैं।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, ४-१-१९२५

४११. मनसे और बेमनसे

कांग्रेसका काम निर्विघ्न समाप्त हो गया। काम एक ही था, अगर ऐसा भी कहें तो गलत न होगा। वह काम यह स्वीकार करना था कि सूत कातना भारतीय-मात्रका धर्म है। यदि यह बात प्रामाणिकताके साथ स्वीकार की गई हो तो कांग्रेसका यह अधिवेशन हमारे इतिहासमें प्रसिद्ध हो जायेगा; और यदि यह कदम हमने अप्रामाणिकताके साथ उठाया होगा तो इतिहासकार कांग्रेसके इस अधिवेशनको निन्दनीय ठहरायेंगे।

मेरे पास तो ऐसा माननेका एक भी कारण नहीं कि यह कदम अप्रामाणिकताके साथ मनमें मैल रखकर उठाया गया है। जो प्रस्ताव स्वीकार किया गया, स्वयं उस प्रस्तावमें ही मनसे और बेमनसे स्वीकार करनेवाले दो पक्षोंका उल्लेख किया गया है। बेमनसे स्वीकार करनेवालोंने भी कातनेकी आवश्यकताको तो मान लिया है, किन्तु यह स्वीकार नहीं किया कि वे स्वयं कातेंगे। इन्होंने भी वर्षमें २४,००० गज सूत देनेकी बात मान ली है, किन्तु वे यह काम खुशीसे करें, इसे सम्भव बनाना उनका काम है, जिन्होंने प्रस्तावको पूरे मनसे स्वीकार किया है। यदि खुशी-खुशी कातनेवाले लोग नियमित रूपसे कातने लगें तो दूसरे पक्षवाले स्वयं कातनेके धर्मको मानने लगेंगे।

आशा करनी चाहिए कि गुजरातमें बेमनसे स्वीकार करनेवाला पक्ष है ही नहीं। मनसे स्वीकार करनेवालोंकी संख्या भले ही बहुत कम हो, हमें उसकी चिन्ता हरगिज नहीं करनी चाहिए। हम चिन्ता कामकी करें। कोई स्वयं न काते, फिर भी कांग्रेसमे आना चाहे तो उसे ऐसा करनेका पूरा-पूरा अधिकार है।