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पत्र: रेहाना तैयबजीको

किन्तु गुजरातमें ऐसा कोई पक्ष देखनेमें नहीं आया है जो स्वयं कातनेके विषयमें उदासीन हो। कातनेवालोंकी संख्या भले ही प्रारम्भमें छोटी हो, किन्तु यदि हमें वैसे चुस्त लोग मिल जायेंगे तो हम उनकी मार्फत बहुत सारा काम करा सकते हैं, ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।

यदि गुजरात चाहे तो वह इस मामलेमें अगुआ बन सकता है। सारे साधन गुजरातमें हैं। आवश्यकता सिर्फ इस बातकी है कि जनतामें उसके प्रति इच्छा हो। इच्छा उत्पन्न करना कार्यकर्त्ताओंका काम है और इसीमें हमारी संगठन-शक्ति, देश-भक्ति, दृढ़ता आदिकी कसौटी होनी है।

कातनेके प्रचारका अर्थ है, खादी-प्रचार और खादी-प्रचारका अर्थ है विदेशी कपड़ेका परिपूर्ण बहिष्कार। इसलिए अभीतक खादी-प्रचारके लिए जितना किया है, उससे बहुत अधिक प्रयत्न हमें करना है। फिर, खादी-प्रचारका अर्थ है, गुजरातकी खादीका प्रचार। जबतक गुजरात स्वयं अपना कपड़ा तैयार करके उसीका उपयोग नहीं करता तबतक गुजरातमें खादीका चमत्कार दिखाई नहीं पड़ सकता। खादी-प्रचारके साथ-साथ गुजरातमें अन्य सभी कलाएँ अपने-आप आ जायेंगी और गुजरातकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी।

गुजरातमें भुखमरी भले ही न हो, किन्तु उसमें तेज भी नहीं है। यहाँके बालकोंको दूध नहीं मिलता और जब कभी यहाँ अकाल पड़ जाता है तो यहाँके लोग भीख माँगने निकल पड़ते हैं। हिन्दुस्तानके बाहर कदाचित् ही कहीं ऐसा होता हो। विदेशी कपड़ेके सम्पूर्ण बहिष्कारके बाद ही गुजरात इस स्थितिसे छुटकारा पा सकता है।

[ गुजराती से ]
नवजीवन, ४-१-१९२५

४१२. पत्र: रेहाना तैयबजीको

५ जनवरी, १९२५

प्रिय रेहाना,

मुझे खुशी है कि तुम आ रही हो। तुम्हें शायद मालूम हो कि मेरे पिता के एक मित्र ईश्वरकी निरन्तर आराधना करके अपने रोगसे मुक्त हो गये थे। क्या तुम भी वैसा नहीं कर सकती? अगर तुम चाहो तो ठीक हो सकती हो।

तुम्हारा,
मो० क० गांधी

अंग्रेजी पत्र (एस० एन० ९५९९) की फोटो-नकलसे।