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४१३. पत्र: फूलचन्द शाहको

पोष सुदी ११, १९८१ [५ जनवरी, १९२५]

भाईश्री फूलचन्द,

यदि किसी कार्यक्रमको हाथमें लेनेकी बात सोची तो भावनगर पहुँचने के बाद ही लूँगा। अभीसे आप मुझे न बाँधिये। मैं बहुत थका हुआ हूँ और मुझे अभी भी अनेक योजनाओंमें भाग लेना बाकी है।

बापूके आशीर्वाद

भाईश्री फूलचन्द कस्तूरचन्द
केळवणी मण्डल कार्यालय,
बढवान शहर

गुजराती पत्र (सी० डब्लू० २८२४)से

सौजन्य: शारदाबहन शाह

पत्र: अवन्तिकाबाई गोखलेको

पोष सुदी ११, १९८१ [५ जनवरी, १९२५]

चिरंजीव छगनलालने मुझे आपकी आर्थिक स्थितिके बारेमें बताया है; सुनकर दुःख हुआ। आपने इस सम्बन्धमें मुझसे आजतक कुछ क्यों नहीं कहा? खैर जो हुआ सो हुआ। आप दोनों जब चाहें तब यहाँ आकर रह सकते हैं। आप इसे अपना घर ही समझियेगा। डाक्टर मेहताका बंगला फिलहाल खाली ही पड़ा है। उसके एक हिस्सेका उपयोग आप कर सकेंगी। नया मकान बनानेका विचार हम बादमें करेंगे। यह सुझाव आपके स्वास्थ्यको ध्यानमें रखकर मैंने पहले ही दिया था। आप सार्वजनिक कार्य यहाँ भी कर सकेंगी। निर्णय करनेमें देर न लगाइये। वहाँ भला कैसे आ सकती हूँ---ऐसा व्यर्थका विचार मनमें हरगिज न लाइये।

अपने स्वास्थ्यका समाचार लिखियेगा। पत्रोत्तर भावनगर भेजिये। वहाँ ८ तारीखसे १३ तारीखतक रहनेका मेरा विचार है। पत्र सर प्रभाशंकर पट्टणी के पतेपर लिखियेगा

मोहनदासके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४८३८) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: बम्बई राज्य कमेटी, सं. गा. बा.।