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४१५. पत्र: कपिल ठक्करको

आश्रम
साबरमती
पोष[१]सुदी ११, १९८१ [५ जनवरी, १९२५][२]

भाईश्री कपिल,

आपका पत्र मिला। खेद है कि मैं इस बार बोटाद न जा सकूँगा। मुझे जरा भी समय नहीं मिलता।

मोहनदास गांधी वन्देमातरम्

भाईश्री कपिल ठक्कर,
भावनगर

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८९६) से।

सौजन्य: कपिल ठक्कर

४१६. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको

पोष सुदी ११, १९८१ [५ जनवरी, १९२५]

सुज्ञ भाईश्री,

मैं यह कह देना उचित समझता हूँ कि मेरे साथ लक्ष्मी (अन्त्यज बालिका) भी होगी। इस कारण यदि किसी भी स्थानपर मेरी उपस्थिति आपत्तिजनक मानी जाये तो मुझे इशारा भर कर दीजियेगा; मैं समझ जाऊँगा और वहाँ न जानेका आग्रह मैं स्वयं करूँगा, ताकि किसीकी स्थिति विषम न हो जाये। इस सबका भार आपपर ही डाल रहा हूँ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१८८) से।

सौजन्य: महेश पट्टणी

  1. साधन-सूत्रमें मार्गशीर्ष दिया हुआ है।
  2. डाककी मुहरसे।