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४१७. पत्र: लक्ष्मीनिवास बिड़लाको

पोष सुदी ११ १९८१ [५ जनवरी, १९२५]

चि० लक्ष्मीनिवास,

तुमारा खत मिला। मुझे बहोत आनंद हुआ।

सच्च है कि सबको चर्खा चलाना चाहिये। जैसे इस जगत्‌का चक्र एक क्षण भी बंध नहि होता है ऐसे ही चर्खा किसी रोज कोई भारतवर्षके घरमें बंध रहना न चाहिये। धनिकोंके लीये में चर्खाको ज्यादह् आवश्यक समझता हुं। मेरी उमेद है कि सब चर्चा चलावेंगे और सूत मुझें भेजेंगे।

शुभेच्छक,
मोहनदास गांधीका आशीर्वाद

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१०१) से।

सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

४१८. तार: प्रभाशंकर पट्टणीको

साबरमती
७ जनवरी, १९२५

सर प्रभाशंकर पट्टणी
भावनगर

आपका तार पानेसे पहले मैं स्वागत समितिको जवाब दे चुका था। परिषद्के[१] दौरान मैं उनकी मानूँगा। यही उचित और आवश्यक लगता है कि उन्हींका अतिथि रहूँ। मुझे आगेवालोंके लिए अटपटा उदाहरण स्थापित नहीं करना चाहिए। देवचन्द भाई[२] सहमत हैं और ठीक ही आग्रह करते हैं कि मैं स्वागत समितिका अतिथि होऊँ। अतः नौ तारीखतक कृपया क्षमा करें।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (जी० एन० ५८७५) की फोटो-नकल तथा सी० डब्ल्यू० ३१८९ से।

  1. तृतीय काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्।
  2. देवचन्द पारेख, वकील; काठियावाड़के सामाजिक कार्यकर्त्ता।