सूत तो उन्हें उसी तरह भेजना चाहिए जिस तरह भेजते आये हैं। सालके शुरू होनेके बाद बालिग लोग जितना भी कातें, अपने ही पास रखें और सदस्यताके माहवारी चन्देके तौरपर अपनी-अपनी प्रान्तीय समितियोंको भेज दें। अबतक कतैये जितना कातते, भेज देते थे; और बहुत-से लोगोंने तो २,००० गजसे भी कम सूत भेजा है। अब अपनी सक्रिय सदस्यता बनाये रखने के लिए हर महीने कमसे कम २,००० गज भेजना तो जरूरी है ही। यदि वे चाहें तो ज्यादा भेज सकते हैं। उन्हें इस बातका खयाल रखना चाहिए कि जितना सूत भेजें उतनेकी रसीद ले लें। २,००० गजसे जितना अधिक सूत भेजेंगे उतना दूसरे महीने के हिसाबमें गिन लिया जायेगा। छोटी उम्र के लड़के-लड़कियाँ सूत दानके तौरपर प्रान्तीय कमेटियोंको भेजें। वे सदस्य नहीं बन सकते। मुझे बताया गया है कि फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जो सिर्फ मुझको ही सूत भेजना चाहेंगे। मैं उन्हें अपनी-अपनी कमेटियोंको सूत भेजने की सलाह दूँगा, लेकिन यदि वे ऐसा न करें तो मैं खुशीसे उनके सूतको स्वीकार करूँगा और सदाकी तरह उसका अच्छेसे अच्छा उपयोग करूँगा।
पुरस्कार-निबन्ध
चरखे और खद्दरके सन्देशके सम्बन्धमें पुरस्कार-निबन्धकी[१] शर्तें ये हैं:
१. निबन्ध अंग्रेजीमें और चार भागों में विभक्त होना चाहिए; पहले भाग में भारत में अंग्रेजोंके आनेसे पहले हाथ-कताईका इतिहास और खद्दर (अर्थात् हाथ-कते सूतसे हाथ-बुने कपड़े, जिसमें ढाकाकी प्रसिद्ध 'शबनम' भी शामिल है) के व्यापारकी कहानी दी जाये; दूसरे भागमें हाथ कताई और खद्दरके व्यापारके विनाशका क्रमबद्ध इतिहास दिया जाये, तीसरे में हाथ कताई और खद्दरकी सम्भावनाओंकी जाँच-पड़ताल की जाये और भारतीय मिल उद्योग तथा हाथ कताई और हाथ-बुनाईकी तुलना की जाये और चौथे भागमें चरखेके जरिये विदेशी कपड़ेका बहिष्कार कहाँतक सम्भव है, इसपर विचार किया जाये। निबन्धकी स्थापनाओं की पुष्टि प्रामाणिक आँकड़ोंसे की जाये और एक परिशिष्ट भी दिया जाये, जिसमें सभी सन्दर्भ-पुस्तकों और लेखक द्वारा अपने विचारोंके समर्थनमें दिये गये अधिकारी लेखकोंकी सूची दी जाये।
२. प्रतियोगिता में भाग लेनेवाले अपने निबन्धको जितना चाहें उतना संक्षिप्त बना सकते हैं; किन्तु उसमें तथ्यों और आँकड़ोंका पूरा लेखा आ जाना चाहिए।
३. निबन्ध रजिस्टर्ड बुकपोस्ट द्वारा 'यंग इंडिया' के दफ्तर में भेजा जाये और उसके साथ एक अलग कागजपर लेखकका नाम भी भेजा जाये। निबन्ध अधिकसे-अधिक आगामी १५ मार्च तक 'यंग इंडिया' के दफ्तरमें पहुँच जाना चाहिए। निबन्धके निर्णायकों-में श्री शंकरलाल बैंकर, श्री मगनलाल गांधी और स्वयं मैं रहूँगा। परिणामकी घोषणा अधिकसे-अधिक ३१ मार्च, १९२५ तक कर दी जायेगी। यदि निबन्ध एक निश्चित स्तरसे नीचेके होंगे तो निर्णायकोंको अधिकार होगा कि वे चाहें तो सभी निबन्धोंको रद कर दें। पुरस्कार परिणामकी घोषणा के बाद विजेताको दिया जायेगा।
- ↑ देखिए "टिप्पणियाँ", १-१-१९२५ का उप-शीर्षक "एक इनाम"।