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निबन्धके प्रकाशनका अधिकार धन-दाताकी इच्छाके अनुसार अखिल भारतीय खादी बोर्डको होगा।

मुझे आशा है कि महान् चरखा आन्दोलनमें जिन-जिन विद्वानोंकी रुचि हो और जिन्होंने इस विषयका अध्ययन किया हो, वे सभी इस प्रतियोगिता में भाग लेना उपयोगी मानेंगे।

गरीबी एक कारण

एक बंगाली मित्रने एकताके सम्बन्धमें लिखा है:

बंगालमें और कदाचित् दूसरे प्रान्तोंमें भी, शिक्षित मध्य वर्गोंकी आर्थिक कठिनाइयोंसे लोकसेवाकी भावना और देशभक्तिके विकासमें रुकावट पड़ती है। युवक सभाओं में बड़ी संख्यामें आते हैं और भाषणोंपर तालियाँ बजाते हैं। जब वे स्कूलों और कालेजोंसे निकलते हैं तो उन्हें जीवन-निर्वाहके संघर्षका अनुभव होने लगता है। इससे उनकी युवकोचित स्फूर्ति और उनका उत्साह मन्द पड़ जाता है और राष्ट्रीय कार्यको आगे बढ़ानेमें उनकी कोई वास्तविक रुचि नहीं रह जाती।

लेखकने यह निष्कर्ष ठीक ही निकाला है कि यह बुराई न्यूनाधिक सभी प्रान्तोंमें मिलती है। इसका उपाय स्पष्ट है। कोई भी सरकार छात्रोंकी साल-दर-साल बढ़ती हुई संख्या के लिए रोजगारकी व्यवस्था नहीं कर सकती। इस पेचीदा सवालको हल करनेका केवल एक ही तरीका है; वह यह कि शिक्षाके सम्बन्धमें प्रचलित इस आम धारणाको बदल दिया जाये कि शिक्षा एक अच्छी जीविका पानेका साधन है। शिक्षा मानसिक और नैतिक उन्नतिके लिए प्राप्त की जानी चाहिए। दूसरे, उसका यह फल होना चाहिए कि बेरोजगार युवकोंको श्रम गरिमाकी प्रतीति हो सके और वे अपने अन्दर चरखा-उद्योगका संगठन हाथमें लेनेकी योग्यता विकसित करें। यदि युवक आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करने और गाँवमें जाकर साधारण आयपर सन्तोष करनेके लिए तैयार हों तो उनकी बड़ीसे -बड़ी संख्या भी इस कार्य में खप सकती है।

[ अंग्रेजी से ]
यंग इंडिया, ८-१-१९२५