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४२२. भाषण: विषय समितिकी बैठकमें[१]


८ जनवरी, १९२५

जनताका हृदय जीतनेका एक ही उपाय है---चरखा। जहाँ-तहाँ अधर्मकी पताका फहरा रही है। आज तो 'धर्म-संस्थापन' चरखेके माध्यमसे ही सम्भव है। आज तो हम सबकी दशा त्रिशंकु-जैसी है। चरखेके सिवाय इस भयानक स्थिति से छुटकारा पानेका और कोई उपाय नहीं है। जनताको इसीके माध्यमसे प्रभावित किया जा सकता है। सरकार में भी धर्म-भावना इसीके बलपर जगाई जा सकेगी। एक सज्जन पूछते हैं कि 'क्या मूँछोंवाले लोग भी सूत कातने बैठेंगे?" दिलाना चाहूँगा कि आज तो हमारी मूँछें मुड़वा डालनेकी घड़ी आ गई है। लंका-शायरमें जो लोग मशीनें चला रहे हैं और इस तरह जो लोग साम्राज्य चला रहे हैं, वे मुछाड़िए हैं या मूँछ-विहीन हैं? इस विषयपर जो साहित्य लिखा जा रहा है, वह भी पुरुषोंके द्वारा ही लिखा जा रहा है। परिवारकी रसोई स्त्री बनाती है, किन्तु जब समूची जाति भोजनके लिए बुलाई जाती है, तब रसोई बनाना मुछाड़ियोंके बिना नहीं चलता। कोई-कोई उच्च वर्णवाला होनेका, ब्राह्मण होनेका तर्क उठाते हैं। वर्णाश्रम यानी कार्य-विभाजन--यह बात मैं स्वीकार करता हूँ। किन्तु कार्यका अर्थ यहाँ प्रधान रूपसे करनेका कार्य ही है। उसके बाद करनेके कार्य सभीके लिए समान हो सकते हैं और आज तो वैसा होना ही चाहिए। भाई सतीशचन्द्र दास गुप्तने चरखेकी विद्याको शास्त्रका रूप दिया है। पालितानाके एक तहसीलदारका मुझे एक सुन्दर पत्र मिला है। उसमें वे कहते हैं कि मैं नियमित रूपसे कातता हूँ और दीवान साहब या ठाकुर साहब मुझे कातनेसे रोकते नहीं हैं। मैं जितना ही अधिक कातनेका अभ्यास करता जाता हूँ, उतनी ही मेरी शक्ति बढ़ती जाती है। मुझे तो यहाँतक लगता है कि मैं अपने घोड़ेकी पीठपर भी एक नन्हा-सा चरखा लेकर दौरेपर जा सकता हूँ। यदि ऐसा कोई हाकिम लोकप्रिय हो जाये तो इसमें आश्चर्यकी क्या बात। जनता आपके किस गुणसे आकृष्ट होकर आपके पीछे चले? पहली बार जब किंग जॉर्ज काम सीखनेके लिए जहाजपर भेजे गये, तो उन्हें दूसरे मल्लाहोंकी तरह काली काफी, काली रोटी और पनीर मिलता था। उनके खाने या रहने की कोई विशेष व्यवस्था नहीं की गई थी---उनके लिए अपने अन्य सहयोगियों जैसी ही व्यवस्था थी। कपड़ेतक जैसे खलासियोंको पहनने के लिए दिये जाते हैं, वैसे ही दिये जाते। इस बात से आप यह समझ जायेंगे कि अंग्रेजी जनता क्यों अपने राजा जॉर्जके पीछे पागल है। राजा और प्रजा, कार्यकर्त्तागण और जनसाधारण चरखेके तारके द्वारा परस्पर बाँधे जा सकते हैं। मैं मोटी मारड गया था। यद्यपि वह गाँव रेलवे स्टेशनसे दूर है, किन्तु मैंने देखा कि मलमलका कपड़ा वहाँ भी पहुँचा हुआ

  1. बैठक भावनगरमें हुई थी।