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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुख्य विषयपर आनेसे पहले मैं भाई मनसुखलालके निधनका उल्लेख करना चाहता हूँ। आप सब उनके साथ मेरे सम्बन्धोंसे अवगत हैं। आप सबको उनकी अनुपस्थिति आज खटके तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं है, लेकिन मैं यह बात छिपा नहीं सकता कि मुझे उनकी कमी बहुत ज्यादा खटक रही है। कविश्री मणिशंकर रतनजी भट्टका निधन भी आपके और मेरे लिए वैसा ही दुःखका विषय है। मुझे उन्हें निकटसे जाननेका सौभाग्य नहीं मिला था। अब उनका सहयोग हमें उपलब्ध नहीं होगा, यह कोई मामूली बात नहीं है। ईश्वर दोनों परिवारोंको ये क्षतियाँ सहन करनेकी शक्ति दे। हम उनके दुःखमें दुखी हैं, इस जानकारीसे आशा है उनका दुःख हलका होनेमें सहायता मिलेगी।

महासभा और देशी-राज्य

मैंने अकसर कहा है कि देशी रियासतोंसे सम्बन्धित प्रश्नोंपर कांग्रेसको सामान्यतः अ-हस्तक्षेपकी नीति अपनानी चाहिए। ब्रिटिश भारतकी जनता इस समय स्वयं अपनी आजादी के लिए संघर्ष कर रही है; ऐसे समय में इसके लिए देशी रियासतोंके मामलों में टॉंग अड़ाना अपनी शक्ति-हीनताका ही परिचय देना होगा। जिस तरह देशी रियासतों और ब्रिटिश सरकारके सम्बन्धोंमें कांग्रेसकी कोई प्रभावशाली आवाज नहीं हो सकती, उसी प्रकार देशी रियासतों और उनकी अपनी प्रजाके बीचके सम्बन्धोंमें भी कांग्रेसका हस्तक्षेप व्यर्थ सिद्ध होगा।

फिर भी ब्रिटिश भारतकी जनता और देशी रियासतोंकी जनता एक है, क्योंकि भारत एक है। उदाहरण के लिए, बड़ौदाके भारतीयोंकी आवश्यकताएँ और उनके रीति-रिवाज अहमदाबादके भारतीयोंसे भिन्न नहीं हैं। भावनगरके लोगोंका राजकोटके लोगोंसे घनिष्ठ सम्बन्ध है। तथापि कृत्रिम परिस्थितियोंके परिणामस्वरूप राजकोटकी नीति भावनगरकी नीतिसे भिन्न हो सकती है। एक ही प्रकारके लोगोंके सम्बन्धमें विभिन्न नीतियोंका होना एक ऐसी चीज है जो बहुत दिनोंतक नहीं चल सकती। परिणामतः कांग्रेस के हस्तक्षेप किये बिना ही, परिस्थितियोंके अदृश्य दबावसे ही अलग राज्योंके अलग क्षेत्राधिकार होनेके बावजूद नीतियोंमें समानता आयेगी। विविधता में भी एकता ला सकने की हमारी क्षमता ही हमारी सभ्यताकी खूबी और परीक्षा होगी।

लेकिन मेरा दृढ़ मत है कि जबतक ब्रिटिश भारत स्वतन्त्र नहीं होता, जबतक ब्रिटिश भारतके लोग वास्तविक शक्ति नहीं प्राप्त कर लेते अर्थात् जबतक ब्रिटिश भारतमें आत्माभिव्यक्ति करनेकी शक्ति नहीं आती --एक शब्दमें कहें तो जबतक ब्रिटिश भारत स्वराज्य नहीं प्राप्त कर लेता तबतक ब्रिटिश भारत और भारतकी देशी रियासतों में विभ्रम और अस्थिरताकी यह दशा बनी ही रहेगी। तीसरी सत्ताका अस्तित्व ही इस दशा के चलते रहनेपर निर्भर है। हम अपने घरको तभी सुव्यवस्थित कर सकते हैं जब ब्रिटिश भारत स्वराज्य प्राप्त कर ले।

स्वराज्य के अन्तर्गत देशी राज्योंकी स्थिति

स्वराज्य मिल जानेपर स्थिति क्या होगी? तब यहाँ पारस्परिक सहायता और सहयोगके सम्बन्ध होंगे और विनाशकारी संघर्ष भूतकालकी चीज बन जायेगी।