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अध्यक्षीय भाषण: काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् में

है कि हम अपने खानेमें कटौती करते हैं ताकि कपड़ेपर पैसा खर्च कर सकें और इस प्रकार दिनोंदिन ज्यादा दुःखमें डूबते जाते हैं। अगर हमारे घरोंमें या हमारे गाँवोंमें कृषि और कताई-बुनाई, ये दो उद्योग समाप्त हो गये तो हमारा विनाश निश्चित है। अगर भावनगरके अधीन जितने गाँव हैं वे सब अपना खाना और कपड़ा भावनगरसे मँगवाने लगें तो क्या परिणाम होगा, इसकी कल्पना में इस परिषद् के सदस्योंपर छोड़ता हूँ। तथापि यही अस्वाभाविक प्रक्रिया हमने अपने कपड़ेकी बाबत अपना ली है। हम अपना कपड़ा या तो विदेशोंसे मँगवाते हैं या मिलोंसे प्राप्त करते हैं। दोनों ही हालतों में इसका ग्रामीण जनतापर क्षयकारी प्रभाव पड़ता है।

हमें उन देशोंके उदाहरणसे धोखेमें नहीं पड़ जाना चाहिए जो अपनी जरूरतका कपड़ा बाहरसे आयात करते हैं और फिर भी आर्थिक दृष्टिसे नुकसान नहीं उठाते। अन्य देशोंमें यदि लोग कताई या बुनाईका धन्धा छोड़ते हैं तो वे उसके बदले कोई और अधिक लाभदायक उद्योग अपना लेते हैं। दूसरी ओर हम हैं जिन्होंने कताई और कुछ हदतक बुनाईका धन्धा छोड़ दिया है और इससे बचे फालतू समयका उपयोग करनेके लिए हमारे पास कोई दूसरा उद्योग भी नहीं है।

काठियावाड़ के लिए आर्थिक संकटसे बचना बहुत आसान है। हमारे नरेश लोग स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करके लोगोंको प्रोत्साहित कर सकते हैं और उन्हें अपने घरोंमें खादीकी पुनः प्रतिष्ठा करनेके लिए प्रेरित कर सकते हैं और इस प्रकार काठियावाड़की दिनोंदिन बढ़ती गरीबीको रोक सकते हैं। मेरे विचारमें काठियावाड़में मिलें और रुई साफ करनेकी मशीनें लगानेसे लोगोंकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी नहीं, बल्कि वह तो एक बड़ी दुर्घटना होगी। मध्यमवर्गीय लोगोंको आजीविका की खोजमें यहाँसे बाहर जाना पड़े, यह एक स्वस्थ चिह्न नहीं है । इसमें कोई हर्ज नहीं है कि कुछ उद्यमशील व्यक्ति धनोपार्जनके लिए काठियावाड़से बाहर जायें; लेकिन रियासतोंके लिए यह शर्म की बात कि उनकी प्रजा कंगाल होकर लाचारीकी हालतमें बाहर जानेको बाध्य हो। जब भी मैं कुछ दिनों बाहर रहनेके बाद काठियावाड़ वापस लौटा हूँ, मैंने देखा है कि लोगोंकी हिम्मत बढ़ने के बजाय वे और पस्त-हिम्मत हो गये हैं।

सौभाग्यसे कताई और बुनाईकी कला दिनोंदिन फिरसे जीवित होती जा रही है और खादीका महत्त्व समझा जा रहा है। क्या, नरेश और सामन्त लोग इस आन्दोलनकी सहायता नहीं करेंगे? यदि वे किसानोंको काठियावाड़ की जरूरत-भरकी रुई जमा करके रखनेकी बात समझायें और स्वयं खादी पहनकर उसका प्रचलन करें तो उनके लिए यह कोई कम श्रेयकी बात नहीं होगी। सभी खादी मोटी हो, यह जरूरी नहीं है। नरेश लोग हाथ-कताई और हाथ बुनाईको प्रोत्साहन देकर बुनाईसे सम्बन्धित कई प्रकारकी कलाओं और शिल्पोंको पुनः जीवित कर सकते हैं। राज महिलाएँ कलात्मक रूपसे रंगे हुए और चाँदीकी घंटियोंसे सजे चरखोंपर महीन सूत कातें, उस सूतसे बारीक कपड़ा बुनवायें और उसे ही धारण करें। मैंने काठियावाड़में बारीक और खूबसूरत किस्मका कपड़ा बुना जाते स्वयं देखा है। यह कला अब लगभग