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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मृत हो चुकी है। ऐसी कलाओंको प्रोत्साहित करना क्या नरेशोंका विशेष कर्त्तव्य नहीं हैं?

अस्पृश्यता

दूसरा बहुत ही महत्त्वपूर्ण सवाल अस्पृश्यताका है। दलितवर्गके लोग बृहत्तर गुजरातमें अन्य किसी भी स्थानकी अपेक्षा शायद काठियावाड़में ज्यादा पीड़ित जीवन व्यतीत करते हैं। यहाँतक कि रेलगाड़ियोंमें भी उन्हें तंग और परेशान किया जाता है। पीड़ित लोगोंको राहत पहुँचाना नरेशोंका विशेष कर्त्तव्य है। दुर्बलोंके वे स्वाभाविक रक्षक हैं। क्या वे दलित वर्गोंकी सहायताके लिए आगे नहीं आयेंगे? नरेश लोग अपनी प्रजाके आशीर्वादोंसे जीवित रहते हैं। क्या वे दलितोंकी दुआएँ अर्जित करके स्वयं अपना जीवन समृद्ध नहीं करेंगे? शास्त्र कहते हैं कि ब्राह्मण और भंगीमें कोई भेद नहीं है। आत्मा दोनों में है; दोनोंमें पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। नरेश लोग यदि चाहें तो इन वर्गोंके लोगोंकी दशा सुधारनेके लिए बहुत-कुछ कर सकते हैं और धार्मिक भावनासे उनके साथ वे मिले-जुलें तो अस्पृश्यता समाप्त कर सकते हैं। उन्हें चाहिए कि दलित वर्गोंके लिए स्कूल स्थापित करें और कुएँ खुदवायें और इस तरह उनके हृदय-सिंहासनपर आसीन हों।

मैंने आलोचना क्यों की?

मैंने महज आलोचनाकी ही गरजसे रियासतोंकी आलोचना नहीं की है। मैं जानता हूँ कि गांधी-परिवारका रियासतोंसे तीन पीढ़ीका सम्बन्ध रहा है। तीन राज्यों में दीवानी करते तो मैंने ही देखा है। मुझे याद है कि मेरे पिता और मेरे चाचाके सम्बन्ध अपने-अपने राजाओंसे बहुत ही सद्भावपूर्ण थे। चूँकि मेरा विश्वास है कि मुझमें अच्छे-बुरेका भेद कर सकनेकी शक्ति है इसलिए मैं उत्सुक हूँ कि रियासतोंकी अच्छी बातें ही मैं देखूँ। जैसा कि मैंने पहले ही कहा, मैं उनकी समाप्ति नहीं चाहता। मेरा विश्वास है कि रियासतें लोगोंका बहुत भला कर सकती हैं। और यदि मैं आलोचना करता हूँ तो इसीलिए कि वह राजाओं और उनकी प्रजा, दोनोंके ही हितमें है। मेरा धर्म सत्य और अहिंसापर आधारित है। सत्य ही मेरा ईश्वर है। अहिंसा उसे प्राप्त करनेका साधन है। आलोचना करते समय मैंने सत्य ही बतानेकी कोशिश की है और अहिंसा या प्रेमकी भावनासे प्रेरित होकर ही मैंने वैसा किया है। मैं मानता हूँ कि राजा और सामन्त लोग मेरी बातोंको उसी भावनासे समझें और स्वीकार करें।

रामराज्य

देशी रियासतोंके लिए मेरा आदर्श राम-राज्य है। रामने एक धोबीका उलाहना सुनकर और अपनी प्रजाको सन्तुष्ट करनेके लिए सीताको त्याग दिया था, जो कि उन्हें प्राणोंसे प्यारी थी और पवित्रताकी साक्षात् अवतार थीं। रामने कुत्तेतक के साथ न्याय किया था। सत्यकी रक्षाके लिए राज्य छोड़ जंगलमें रहकर रामने संसार-भरके राजाओंको शुद्ध आचरणका वस्तु-पाठ पढ़ाया। अपने कठोर और एक-पत्नी-