पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५९४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किसी नीतिके विरुद्ध हो तो राजाके लिए उस नीतिको अपना सकना असम्भव है। विरोधसे यहाँ मतलब मन-ही-मन बुड़बुड़ानेसे नहीं है। जनमत तभी प्रभावकारी होता है जब उसके पीछे शक्ति हो। जब किसी पुत्रको अपने पिताके किसी कार्यपर आपत्ति होती है तो वह क्या करता है? वह अपने पितासे उस आपत्तिजनक कार्यको न करनेकी प्रार्थना करता है अर्थात् आदरपूर्वक निवेदन करता है। यदि बार-बार प्रार्थना करनेपर भी पिता नहीं मानता तो बेटा उससे असहयोग करके अपने पिताका घर तक छोड़ देता है। यह शुद्ध न्याय है। यदि पिता और पुत्र असभ्य हैं तो वे एक-दूसरेसे झगड़ते हैं, गाली-गलौज करते हैं और कभी-कभी तो मार-पीट भी करते हैं। आज्ञाकारी पुत्र सदा विनम्र शान्त और पिताके प्रति प्रेमभाव रखनेवाला होता है। यह उसका प्रेम ही है जो उसे अवसर आनेपर असहयोग करनेके लिए बाध्य करता है। स्वयं पिता भी इस प्रेमपूर्ण असहयोगको समझता है। वह अपने पुत्रका इस तरह घर छोड़कर चला जाना या उससे अलग होना सह नहीं सकता, मनमें दुःखी होता है और पश्चात्ताप करता है। हमेशा यही होता है, ऐसी बात नहीं है। लेकिन असहयोग करनेका पुत्रका कर्त्तव्य स्पष्ट है।

किसी राजा या उसकी प्रजाके बीच भी ऐसा असहयोग सम्भव है। परिस्थिति विशेषमें ऐसा करना जनताका कर्त्तव्य भी हो सकता है। ऐसी परिस्थितियाँ वहीं सम्भव हैं जहाँकी प्रजाके लोग स्वभावसे निर्भय और स्वाधीनता-प्रेमी होते हैं। वे राज्यके कानूनोंकी सामान्यतः कद्र करते हैं और दण्ड-भयके बिना ही उसका पालन करते हैं। समझ-बूझकर और इच्छापूर्वक राज्यके कानूनों का पालन, असहयोगका पहला पाठ है।

दूसरा पाठ है 'सहिष्णुता'। राज्यके बहुत-से कानून हैं जो असुविधाजनक हों तो भी उनका पालन हमें करना चाहिए। पुत्र अपने पिताकी कुछ आज्ञाओंसे सहमत न होनेपर भी उनका पालन करता है। जब पिताकी आज्ञाएँ सहने योग्य न हों और अनैतिक हों तभी वह उनकी अवज्ञा करता है। पिता ऐसी सविनय अवज्ञाको तुरन्त समझ जायेगा। इसी तरह जब किसी राज्यके लोग राज्यके बहुत-से कानूनोंका पालन करके अपनी सक्रिय निष्ठाको सिद्ध कर देते हैं, तभी वे सविनय अवज्ञा करनेके अधिकारी बनते हैं।

तीसरा पाठ कष्ट-सहनका है। जिसमें कष्ट सहनकी क्षमता नहीं है वह असहयोग नहीं कर सकता। जिसने जरूरत पड़नेपर अपनी सम्पत्ति, यहाँतक कि परिवारका त्याग करना नहीं सीखा है वह असहयोग नहीं कर सकता। ऐसा सम्भव है कि असहयोगसे चिढ़कर कोई राजा तरह-तरहके दण्ड दे। इसमें प्रेम, धैर्य और शक्तिकी परीक्षा है। जो अग्नि -परीक्षा झेलनेके लिए तैयार नहीं है वह असहयोग नहीं कर सकता। केवल एक या दो व्यक्तियोंने ही यदि ये तीन पाठ हृदयंगम किये हों तो ऐसा नहीं माना जा सकता कि सारी जनता असहयोगके लिए तैयार हो चुकी है। असहयोग कर सकें, इससे पहले काफी बड़ी संख्यामें लोगोंका इन तीन बातोंको सीखना आवश्यक है। जल्दबाजी में किये गये असहयोगका परिणाम हानिकारक ही होगा। कुछ राष्ट्र-प्रेमी नौजवान मेरे द्वारा बताई गई सीमाओंको न समझ पानेके