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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समय करीब ही है। मुझे पूरा विश्वास है कि यदि हम स्वेच्छासे आज उसे स्वीकार नहीं करते तो परिस्थितियाँ हमें उसके लिए मजबूर कर देंगी। भारतीय अर्थशास्त्रका अध्ययन चरखेका अध्ययन है। चरखा हमारे ह्रासोन्मुखी ग्रामोद्योगोंके पुनरुद्धारकी अपरिहार्य शर्त है। मैं हाथ- कताईको कोई धन्धा नहीं मानता, बल्कि सभी धार्मिक सम्प्रदायोंके अनुयायियोंके लिए उसे एक धार्मिक कर्त्तव्य मानता हूँ।

एक अमेरिकी लेखकका कहना है कि भविष्य उन राष्ट्रोंके हाथमें है जो शारीरिक श्रममें विश्वास करते हैं। दुनियाके देश उन निर्जीव मशीनोंकी पूजासे थक गये हैं, जो निरन्तर संख्या में बढ़ती ही जा रही हैं। हम लोग अप्रतिम सजीव मशीनोंको अर्थात् अपने शरीरको निकम्मा बनाकर और उनकी जगह निर्जीव मशीनोंको देकर शरीरको नष्ट कर रहे हैं। यह एक ईश्वरीय नियम है कि शरीरसे पूरा काम लिया जाये और उसका उपयोग किया जाये। हम उसकी उपेक्षा नहीं कर सकते। चरखा शरीरका शुभ प्रतीक है। जो मनुष्य बिना श्रमका भोग चढ़ाये भोजन करता है वह चोरी करके खाता है। शरीर श्रमसे बचना देश-द्रोह करने और ड्योढ़ीपर खड़ी भाग्य-लक्ष्मीको ठुकराने के समान है। भारतमें जीवित कंकाल-जैसे शरीरवाले असंख्य पुरुष और स्त्री इसके गवाह हैं। मेरे आदरणीय मित्र श्री [ श्रीनिवास ] शास्त्रियर कहते हैं कि मैं लोगोंके कपड़े की पसन्दमें भी हस्तक्षेप करता हूँ। यह बात बिलकुल सही है। देशके प्रत्येक सेवकका यह कर्त्तव्य है कि जब जरूरी हो जाये तो वह वैसा करे। यदि देशमें पतलून अपनाई जाने लगे तो मैं अवश्य उसके खिलाफ अपनी आवाज उठाऊँगा। पतलून हमारे यहाँकी जलवायुकी दृष्टिसे बिलकुल अनुपयुक्त है। यह प्रत्येक भारतीयका कर्त्तव्य है कि वह अपने देशवासियोंके द्वारा विदेशी कपड़ेका उपयोग किये जाने के खिलाफ अपनी आवाज उठाये। विरोध वस्तुतः कपड़े के विदेशी होनेसे नहीं है, बल्कि उस गरीबी से है जो विदेशी कपड़ेके आयातके साथ-साथ इस देशमें आती है। अगर देश अपना ज्वार और बाजरा छोड़कर स्काटलैंडसे ओट या रूससे राईका आयात करने लगे तो मैं निश्चय ही देशकी रसोईके मामले में भी हस्तक्षेप करूँगा, उसे जी भरकर फटकारूँगा, यहाँतक कि धरना दूँगा और अपने हृदयकी व्यथाको सुनाकर मानूँगा। ऐसे हस्तक्षेपकी घटनाएँ हालके जमानेमें ही हुई हैं। यूरोपके पिछले नृशंस युद्धके दौरान लोगोंको कुछ खास फसलें उगानेपर मजबूर किया गया था और राज्योंने अपनी प्रजाके खाने-पीनेपर नियंत्रण लगा दिया था।

जो लोग गाँवोंमें सेवा कार्य करना चाहते हैं उनके लिए चरखेका अध्ययन लाजिमी है। सैकड़ों-हजारों युवक और युवतियाँ चरखेके जरिये अपनी जीविका कमा सकते हैं और दूना लाभ पहुँचा सकते हैं। इस कामके लिए संगठनकी आवश्यकता है और प्रत्येक ग्रामवासीसे परिचय होना जरूरी है, ताकि कार्यकर्त्ता अर्थशास्त्र और राजनीतिकी बुनियादी बातोंका उसे आसानीसे ज्ञान करा सके। इस काममें ग्रामीण बालकों की सच्ची शिक्षा भी शामिल हो सकती है और वहाँ काम करनेसे गाँवकी जरूरतों और कमियोंका भी ठीक अन्दाज लगाया जा सकता है।

खादीके काममें राजा और उसकी प्रजा के बीच किसी प्रकारका संघर्ष सम्भव नहीं है। यही नहीं, बल्कि इससे उनके पारस्परिक सम्बन्ध सद्भावनापूर्ण होनेकी