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अध्यक्षीय भाषण: काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् में

आशा की जा सकती है। इस आशाकी पूर्ति कार्यकर्त्ताओंकी विनयशीलतापर निर्भर करती है। इसलिए इस राजनीतिक परिषद्से चरखेको प्रमुखता देने को कहने में न मुझे कोई शर्म लग रही है और न कोई संकोच ही है।

दलित वर्ग

दलित वर्गोंके बीच काम करना भी ऐसा ही है। सभी हिन्दुओंका यह परम कर्तव्य है कि वे अस्पृश्यताको समाप्त करें। इस काम में भी राजाओंकी ओरसे किसी हस्तक्षेपकी आशंका नहीं है। मेरा पक्का विश्वास है कि दलितोंकी सेवा करते हुए और उनके हृदयसे निकलनेवाला आशीर्वाद पाते हुए हिन्दू लोग यदि आत्म-शुद्धिकी प्रक्रिया जारी रखेंगे तो वे अपना आत्म बल फिरसे प्राप्त कर लेंगे। अस्पृश्यता हिन्दू-धर्मपर एक बहुत बड़ा कलंक है। इस कलंकको मिटाना बहुत जरूरी है। दलितोंकी जो सेवा करेगा वह हिन्दू-धर्मका त्राता होगा और वह अपने दलित भाई और बहनोंके हृदयमें स्थान पायेगा।

शक्ति दो प्रकारकी होती है। एक जो दण्डका भय दिखाकर प्राप्त की जाती है और दूसरी वह जो प्रेमके तरीकोंसे प्राप्त की जाती है। प्रेमपर आधारित शक्ति भयके जरिये प्राप्त शक्तिके मुकाबले 'हजारगुना कारगर और स्थायी होती है। जब इस परिषद् के सदस्य प्रेमपूर्ण सेवाओंके जरिये अपनेको तैयार कर लेंगे तब वे जनताकी ओरसे बोलनेका अधिकार प्राप्त कर लेंगे और उस समय कोई राजा उनका विरोध नहीं कर सकेगा। यदि असहयोग करनेकी कभी जरूरत पड़ी ही तो उसका ठीक वातावरण उसी समय होगा।

लेकिन मुझे राजाओं में भरोसा है। वे ऐसे प्रबुद्ध और सशक्त जनमतकी शक्ति तत्काल पहचान लेंगे। आखिरकार राजा लोग भी भारतीय हैं। यह देश हमारी ही तरह उनके लिए भी सब कुछ है। उनके हृदयको छू सकना सम्भव है। कमसे कम मैं उनकी न्याय-बुद्धिसे अपील करके सही बात मनवा लेना कठिन नहीं मानता। हमने अभीतक कोई सच्चा प्रयास नहीं किया है। हम हड़बड़में हैं। पूरी ईमानदारी से सेवाके लिए अपने को तैयार करने में ही हमारी विजय निहित है ― नरेशोंकी विजय भी और जनताकी विजय भी।

हिन्दू-मुस्लिम एकता

तीसरा सवाल हिन्दू-मुस्लिम एकताका है। मेरे पास काठियावाड़से भेजे गये एक-दो पत्र हैं, जिनसे पता चलता है कि इस सवालपर काठियावाड़में भी कुछ लोग चिन्तित हैं। यह कहने की जरूरत नहीं है कि हिन्दू और मुसलमानोंमें एकता होना जरूरी है। कोई भी कार्यकर्त्ता राष्ट्रके किसी भी अंगकी उपेक्षा नहीं कर सकता।

मेरा कार्य-क्षेत्र

मैं जानता हूँ कि बहुतोंको मेरा भाषण अपूर्ण और नीरस लगेगा। लेकिन मैं अपनी परिधि से बाहर जाकर कोई व्यावहारिक और उपयोगी सलाह नहीं दे सकता। मेरा कार्य-क्षेत्र सुस्पष्ट है और उसमें मुझे सुख मिलता है। मैं तो प्रेमके कानूनपर