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भाषण:काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्, भावनगर में


दास कह गये हैं कि दया धर्म का मूल है, इसलिए प्रेम छोड़ोगे तो बाजी हार जाओगे। आपमें से जो लोग अस्पृश्यता को पाप मानते हैं, वे अपने विरोधियों का तिरस्कार करने का पाप न करें। आप गाली देने वालों के साथ हँसकर बोलना। आप यदि हृदय से उनके साथ प्रेम करेंगे और शुद्ध आचार व व्यवहार रखेंगे तो यह अस्पृश्यता-रूपी पाप चला जायेगा।

लेकिन यहाँ, काठियावाड़ में, ऐसा विरोध होनेकी बात मेरे गले नहीं उतरती। काठियावाड़ तो सुदामा जी की, श्रीकृष्ण की वास भूमि है, यहाँ तो अनिरुद्ध रहे थे। जिस भूमि पर योद्धाओं ने अपना खून बहाया उस भूमि में अस्पृश्यता को स्थान मिलेगा तो मैं कहाँ जाऊँगा? भंगी मुझसे कहते हैं यहाँ उनकी दशा इतनी बुरी है कि काठियावाड़ से बाहर गुजरात में भी उतनी बुरी न होगी। यह सुनकर मेरा हृदय रोता है।

नारणदास संघाणी कौन है? वह तो मेरा बच्चा है। एक समय ऐसा था जब वह पूरी तरह मेरी आज्ञा के अधीन था, केवल मेरा सेवक बनकर रहता था । उसने अपनी सारी लाइब्रेरी मुझे दे दी। लेकिन भगवान ने अब उसे कुमति दी है (मैं सचमुच मानता हूँ कि भगवान ने इसकी मति भ्रष्ट कर दी है) तथापि मेरे लिए तो वह अभी भी बच्चे के समान है। मैं मानता हूँ कि उसका यह तूफान लम्बे समयतक नहीं चलेगा और उसने जो प्रतिज्ञा की है वह फलेगी नहीं। लेकिन यदि ईश्वर चाहे और फले और मेरे ऊपर वह हाथ उठाये तथा आक्रमण करे तो उस समय मैं कहूँगा, " तूने जो किया सो ठीक ही किया", मैं तब भी उसे आशीर्वाद दूंगा । प्रह्लादने अपने पिता का कहना नहीं माना। उसने यही कहा कि मेरे पिता मुझसे अधर्मं करवाना चाहते हैं, मुझे कुमार्ग पर ले जाना चाहते हैं तब ऐसे समय पिता का अनादर करना धर्म है। नारणदास संघाणी यदि आज ऐसा मानता है कि वह मेरा प्रथम पुत्र है, परन्तु यदि उसे ऐसा लगे कि मैं पथभ्रष्ट हो गया हूँ और मेरा संहार करना चाहिए तो उसे जरूर मेरा संहार करना चाहिए। मेरा संहार करते हुए उसकी आँखों का पर्दा हट जायेगा और तब वह आप लोगों के पास आकर क्षमा माँगेगा और प्रायश्चित्त करेगा, ऐसा मेरा विश्वास है। वह तो बालक है, जवान है और मैं अब बूढ़ा हो गया। मेरे ऊपर तो अनेक लोगोंने हाथ उठाये हैं तथापि मैं बच गया हूँ । मुझे एपेन्डिसाइटिसका रोग हुआ, मेरा ऑपरेशन हुआ। ऑपरेशन करते समय दीपक बुझ गया । उस समय कर्नल मैडॉक भी घबरा गये थे। लेकिन ईश्वरको मुझे बचाना था, इसलिए क्या हो सकता था ? उपनिषदों में एक कहानी है- उसमें पवन से कहा जाता है कि तू तिनका उड़ा दे, अग्नि से कहा जाता है कि तिनकेको जला डाल; लेकिन हमसे नहीं होता, यह कहकर अग्नि और वायु भाग खड़े होते हैं। ऐसी कहानी है । यदि ईश्वर नहीं चाहता कि मैं मर जाऊँ तो मुझे कौन मार सकता है? किन्तु मेरे दिन यदि पूरे हो गये होंगे तो भले ही मैं इस तरह बोल रहा होऊँ, चैनसे बैठा हुआ होऊँ, उस समय भी मेरे प्राण ऐसे चुपचाप निकल जायेंगे कि किसीको खबर भी न होगी और कोई उन्हें रोक भी नहीं सकेगा। लेकिन मुझे कुछ व्यावहारिक पक्षका अनुभव है, मैंने कुछ ज्ञान प्राप्त किया है, इसलिए आपसे प्रार्थना करता हूँ कि मेरी बातको मानना और नारणदासपर दया करना। मैं आपसे