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समापन भाषण : काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् में


है, उसका सदुपयोग हो तो वह पावक अग्नि के समान शुद्ध करता है नहीं तो वह सामान्य अग्नि की भाँति जलाता है, मैं जलना नहीं चाहता इसलिए मेरे प्रति आपके प्रेमका उपयोग यदि देश-कार्य में हो तो ही उसका परिवर्तन, शुद्ध परिवर्तन है। यदि आप इतना सब स्वीकार करने के बावजूद कुछ काम नहीं करेंगे और मुझे निराश करेंगे तो काठियावाड़ का क्या होगा, इसपर खूब विचार करना।

कल रात (विषय समिति में) अनेक बातें आपने मुझपर छोड़ दीं। आप प्रस्ताव का एक बड़ा चिट्ठा तैयार करके लाये थे, इस आशा से कि जी भर के अपने दुःखों का वर्णन करेंगे और उस वर्णन मात्र से अपने दुःखों को कम करेंगे। लेकिन मैंने आपको सलाह दी कि आप इस दुःखों के वर्णन की इच्छा छोड़ दें और उसके बजाय अपनी शक्ति का विकास करें। तथा आपने मेरी सलाह मानी। यह सलाह आपने मानी इसका कारण यह नहीं कि मैं एक बड़ा व्यक्ति हूँ, अपितु उसका कारण यह है कि मैं काम करने वाला व्यक्ति हूँ, अनुभव की बात कहने वाला व्यक्ति हूँ। मैंने आपको दूसरा एक भी प्रस्ताव नहीं रखने दिया, राजाओं के विरुद्ध आपकी शिकायतों- की सार्वजनिक चर्चा नहीं होने दी, बल्कि आपके मुँहको बन्द किया है। इससे आप यह न समझना कि मैंने अपना मुँह भी बन्द किया है और अब मैं सो जाना चाहता हूँ। आपको चुप रखकर मैंने अपने ऊपर भारी बोझ ले लिया है। मैं सोना नहीं चाहता, मैं तो सारे साल काम करना चाहता हूँ। लेकिन मेरा रास्ता भिन्न है। मैंने आपको जो सलाह दी है, उसके मूलमें मनुष्य के सम्बन्ध में और काठियावाड़ के राज्यकर्त्ताओं के सम्बन्ध में मेरा विश्वास निहित है; मेरी इस सलाह में मेरे इस विश्वास का दर्शन है। अमृतसर में मैंने मॉन्टेग्यु साहब की निन्दा न करने की सलाह दी; उसमें भी उनका और राजा जॉर्ज का अविश्वास न करने की बात निहित थी। मैंने उस समय कहा था कि आप सुधारों को स्वीकार कर लें और उन सुधारों के तहत जितनी शक्ति अर्जित कर सकते हैं, करें। कांग्रेस ने मेरी सलाह को कुछ हदतक स्वीकार किया । इसका क्या कारण था? उस समय तो लोकमान्य तिलक महाराज-जैसे योद्धा विद्यमान थे और वे मेरे विरुद्ध लड़ने की शक्ति रखते थे। उन्होंने मेरे कथन को क्यों स्वीकार किया होगा? केवल इसीलिए कि उन्हें लगा, गांधी जो कहता है, ठीक कहता है, उन्होंने एक शब्द को बदलकर मेरे कथन को स्वीकार कर लिया। मैंने उनसे कहा: आज विश्वास रखकर आप सुधारों को स्वीकार करें। आप और मैं जिस दिन निराश हो जायेंगे, जिस दिन ये सुधार, सुधार नहीं बल्कि भाररूप जान पड़ेंगे, उस दिन हम इनका त्याग करेंगे और उस समय हमें उनकी निन्दा करने का अधिकार भी प्राप्त हो जायेगा। आज हमें यह अधिकार नहीं है, कारण आज तो मॉन्टेग्यु कहते हैं कि मैंने आपको जितना दिया जा सकता है उतना देनेका प्रयत्न किया है। लॉर्ड सिन्हा जो कि जानकार व्यक्ति हैं, पराक्रमी हैं और देशप्रेमी हैं, उनका भी कहना है कि सुधारों को स्वीकार कर लो। इसके अतिरिक्त सम्राट् के सन्देश में भी माधुर्य था। यह सब सोच-विचार कर मैंने सुधारों को स्वीकार करने की सलाह दी


१. देखिए खण्ड १६, पृष्ठ ३७४-७८