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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


थी। इस विश्वास की स्थिति में से ही असहयोग की उत्पत्ति हुई। आज भी मैं आपको विश्वास की नीति का प्रयोग करने की सलाह दे रहा हूँ। लेकिन आप १९१९ की उपमा को ठीक अन्त तक मत खींचियेगा। उसका आप इतना अर्थ करने के अधिकारी हैं कि मैं सोने वाला नहीं हूँ। आपने मेरे आगे जितनी बातें बताई हैं उनसे अधिक दुःख की पुकार मैंने सुनी है। वे सब सच हैं अथवा झूठ सो मैं नहीं जानता। यदि ये सच साबित होंगी तो मेरे पास जितना समय होगा, मुझ में जितनी चतुराई होगी वह सब मैं खर्च कर डालूँगा। मैं राज्यकर्त्ताओं से मिलने का प्रयत्न करूँगा। मुझे वे मिलने की अनुमति देंगे तो उनसे मैं एक दीन की तरह मिलूंगा और यदि उनकी अनुमति मिली तो उनके साथ मेरी क्या बातचीत हुई उसे सार्वजनिक रूपसे प्रकट करूँगा। धोराजी वाले मुसलमान भाई मेरे पास आये थे। उन्होंने मुझसे कहा कि यह काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् कहलाती है तो क्या आप हमें धोराजी के सम्बन्ध में एक भी शब्द नहीं कहने देंगे? मैंने कहा, नहीं। कारण,उनकी शिकायत में कितना सच और कितना झूठ है सो मैं जानता हूँ। गोंडल के ठाकुर साहब को मैं जानता हूँ। मैं उनसे परिचित हूँ, उनके प्रति मेरे मन में आदर है और मैं जानता हूँ कि वे सुयोग्य शासक हैं। उनके हाथों प्रजा का नुकसान हो यह विचार मेरे लिए असह्य है। एक, दो अथवा पचास व्यक्तियों के कहने पर मैं उनकी भर्त्सना कैसे कर सकता हूँ? मुझसे उनकी निन्दा कैसे हो सकती है? मैं जबतक उनसे मिल नहीं लेता उनके अधिकारियों से बातचीत नहीं कर लेता, तबतक किसी तरह की सलाह देना मेरे स्वभावके विरुद्ध है। इसलिए मैंने धोराजीवालों से कहा कि आप जो कहते हैं, मैं उसकी पूरी-पूरी जाँच करूँगा। अब तो मौलाना शौकत अली आ गये हैं इसलिए मुझमें अधिक बल आ गया है। मेरे लिए हिन्दू और मुसलमान के बीच कोई भेद नहीं लेकिन इन लोगोंको इस बातकी क्या खबर हो सकती है? इसलिए मैंने उनसे कहा कि मौलाना और मैं, दोनों मिलकर आपको सलाह देंगे, और उन्होंने भी कहा कि आप जो सलाह देंगे उसे हम स्वीकार करेंगे।

जो बात गोंडल पर लागू होती है वही जामनगर पर भी लागू होती है। जामनगर के सम्बन्ध में भी मेरे पास बहुत सारी शिकायतें आई हैं। यदि राजा को कोई प्रजा-जन मित्र कह सकता है तो मैं और जाम साहब बालमित्र थे। जाभ- साहब के नाम स्वर्गीय केवल राम भावजी का सिफारिशी पत्र लेकर ही मैं विलायत गया था। इस पत्रसे मुझे अपने कार्य में बहुत सहायता मिली। वहाँ मैं उनसे अनेक बार मिला। उस समय हम सबके मनमें, जो उनके समकालीन थे, यह साध थी कि यदि उन्हें जामनगरकी गद्दी मिले तो कितना अच्छा हो । लेकिन आज तो मैं उनकी बहुत निन्दा सुन रहा हूँ वह सब सच है अथवा झूठ, मुझे मालूम नहीं। लेकिन मेरी इच्छा है कि एक भी बात सच न हो। मैं यह भी चाहता हूँ कि जाने-अनजाने, उनके हाथों अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे प्रजापर जो अत्याचार हुआ है, उसे वे अपने हाथों से धो डालें। उन्हें चिढ़ाना मेरा काम नहीं है। उन्हें नम्रतापूर्वक कहना मेरा काम है और मेरा काम इसके लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना है। अपने दुश्मनोंको