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समापन भाषण : काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् में


भी, यदि कोई दुश्मन हो तो, उदाहरण के रूपमें, सर माइकेल ओ'डायर मुझे दुष्टसे भी दुष्ट मानते हैं, लेकिन यदि वे यहाँ सम्राट् के प्रतिनिधि बनकर आयें तो उनसे भी मैं नंगे पाँवों जाकर मिलूँगा। फिर, जाम साहब के साथ अविनय की बात तो स्वप्न में भी नहीं सोच सकता।

इन दोनों राज्यों के सम्बन्ध में मेरे पास बहुत सारी शिकायतें आई हैं, बहुत सारे कागज पड़े हुए हैं, लेकिन मैं तबतक इस सामग्री का उपयोग नहीं कर सकता जब तक पूरी जाँच करने के लिए ठीक-ठीक उपाय नहीं कर लिए जाते। इसलिए मैं प्रकट रूपसे कदापि इनकी निन्दा नहीं कर सकता, लेकिन इन शिकायतों को मैं भूलने वाला नहीं हूँ। इस वर्ष इन शिकायतों को दूर करवाने के लिए मुझसे जो कुछ हो सकेगा सो मैं करूँगा और उम्मीद करता हूँ कि वर्ष के अन्त में अपने काम की दैनन्दिनी आपके सम्मुख रखूंगा।

अब मेरी आपसे एक प्रार्थना है। आप सार्वजनिक अथवा खानगी रूप से कड़वी टीका करके अपने ही काम में विघ्न न डालना। सार्वजनिक रूप से टीका करके आप शासकों को चिढ़ाना नहीं; कारण; वे राजा हैं, अधिकारी हैं और अधिकार अन्धा होता है। रामचन्द्रजी क्या हर युगमें हुए हैं ? उमर-जैसे खलीफा क्या हर युगमें होते हैं? इस्लाम को वैभव के शिखर पर पहुँचाने वाले चार खलीफाओं का कार्यकाल ३० वर्ष में पूरा हो गया। उसके बाद जितने खलीफा हुए, उनमें से कोई भी उनके समकक्ष नहीं हुआ। यह जगत का न्याय है। रत्न तो दुर्लभ होते हैं। खान को गहरे खोदा जाता है तब कहीं किसी जगह वे मिलते हैं। इसलिए राजा जब चिढ़ उठे, क्रोध करे तब मैं ऐसा नहीं मानता कि वह बेवकूफ है। क्रोध तो मुझमें भी है और आपमें भी है। राजा कोई योगी नहीं है और हम भी योगी नहीं हैं। ऐसे योगी का उदाहरण - केवल जनक विदेही का है। मैं कहता हूँ कि उनका ही उदाहरण है, क्योंकि वे प्राकृत मनुष्य होते हुए भी योगी हो गये। रामचन्द्र तो अवतार कहे जाते हैं। इतिहास हमें बताता है कि जनक विदेही-जैसा एक भी अन्य उदाहरण इस पृथ्वीपर नहीं मिलता। राजा अधिकारी तो है ही और चूंकि वह अधिकारी है इसलिए उसकी कोई- न कोई बात तो सहन करनी ही होगी। हमें जब लोकतान्त्रिक राज्य मिलेगा तब भी कोई अधिकारी तो होगा ही, जिसकी थोड़ी-बहुत बात हमें सहनी ही पड़ेगी। मेरी ही कितनी बातें आपको सहन करनी पड़ी हैं। क्या मैंने अपने अधिकार का अन्धा उपयोग नहीं किया होगा ? एक शास्त्रीने मुझसे भाषण करनेकी अनुमति माँगी, मैंने उन्हें नहीं बोलने दिया। एक [ जैन ] मुनि की भी बोलने की इच्छा थी, उनसे मैंने कहा कि मैं आपको बोलने की होड़ में नहीं उतरने दूंगा। आप तो घर-घर जाकर लोगों से चरखा कतवायें। ऐसा करने में मैंने विनय से काम लिया कि अविनय से, यह मैं कहाँ जानता हूँ? लेकिन इन दो दिनों तक तो, मैं जैसा भी था, था तो राजा। कोई व्यक्ति चाहे कैसा भी क्यों न हो; भले ही चौथे अथवा पाँचवें वर्गका हो तो भी वह राजा तो है और जहाँ पद होगा वहाँ राज्याधिकार होगा ही और जहाँ राज्याधिकार होगा वहाँ क्रोध एवं अन्यायके लिए अवकाश रहता ही है। अतः शासकों के शासन से मिलने- वाले कड़वे घूँट हमें पीने ही पड़ेंगे।