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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


आपके सामने मैंने दो पक्ष रखे हैं। राजपक्ष और प्रजापक्ष। काठियावाड़ के राजाओं के हाथों अन्याय हो, यह मेरे लिए असह्य है। मैं उन्हें इतना ही कहूँगा कि आप किस भौतिक लाभ के लिए यह अन्याय कर रहे हैं। प्रजासे इतना ही कहूँगा कि वह खामोशी से सहन करना सीखे। प्रजा के हकों के सम्बन्ध में मैंने अपने मुद्रित भाषण के अन्तिम अनुच्छेद में कुछ कहा है। इस अनुच्छेद को आप अनेक बार पढ़िये और याद कर लीजिए। जिसने केवल अधिकारों को चाहा है, ऐसी कोई भी प्रजा उन्नति नहीं कर सकी है, केवल वही प्रजा उन्नति कर सकी है, जिसने कर्त्तव्य का धार्मिक रूपसे पालन किया है। कर्त्तव्यों के पालन से उन्हें अधिकार की प्राप्ति हुई ही। कर्त्तव्य का पालन करते-करते ईश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए कि हमें इन अधिकारों की प्राप्ति भी हो। हमारे शास्त्र मातृ-भक्ति और पितृ-भक्ति सिखाते हैं। इसका अर्थ क्या है ? मेरे पिता मुझसे रुष्ट हो जायें, मुझे गाली दें, मारें तो भी मैं उनकी सेवा करूँ, ज्यादा से- ज्यादा उनसे इतना ही कहूँ कि, "पिताजी, इतना ज्यादा मत मारो।" इसका क्या कारण है? आपके सम्मुख गर्जना करने वाले यह शौकत अली -- • अपनी माँ का राक्षस- जैसा विशालकाय बेटा • अपनी माँ के धमकाने पर चुपचाप बैठ जाते थे। इसका रहस्य क्या है? इसका कारण यह है कि माता- पिता के बाद उन्हें अधिकार मिलता है -- विरासत मिलती है। इस आज्ञा-पालन के पीछे पिता की विरासत मिलने की बात छिपी हुई है। किन्तु यदि इस विरासत की आशा रखकर मैं आज्ञा-पालन करूँ तब तो मैं मर ही जाऊँ। इसलिए शास्त्र हमें यह भी सिखाते हैं कि ऐसी आशा रखे बिना ही हम आज्ञा का पालन करें। ऐसे कठिन हैं हमारे शास्त्र। हककी आशा न रखने वाला हक प्राप्त करता है और हककी बात करने वाला परास्त होता है, यह नियम है। और इसी नियमको मैं आपके सामने रखता हूँ। यदि आप इस नियम का पालन करेंगे तो आप समझना कि आपने काठियावाड़ के स्वराज्य की एक विनयी सेना तैयार की है। इस वर्ष आप ऐसे विनयी कार्यकर्त्ताओंकी सेना तैयार करें तो फिर बादमें कोई राजा आपका तिरस्कार नहीं कर सकता। अभी आपको यह आशंका होती है कि कोई राजा आपको अपने राज्यमें परिषद् बुलाने देगा अथवा नहीं। सोरठ वालों ने परिषद् अपने यहाँ करनेका आमंत्रण दिया, सो डरते-डरते दिया। उनके मनमें भय था कि हमने परिषद् अमुक स्थान में करने का विचार किया और कहीं राजा ने इनकार कर दिया तो क्या होगा? अतएव आप अपना वातावरण इतना स्वच्छ करें, अपने चारित्र्यबल का इतना विकास करें कि कोई राजा आपको इनकार कर ही न सके। मेरी सलाह का अर्थ यह न लगाना कि आपको न करने योग्य काम भी करना है, आपके आत्म-सम्मान को ठेस पहुँचे ऐसा काम करना है। बड़ेसे-बड़ा काम करते हुए भी आप अपने आग्रहको मत छोड़ना, सत्यको न छोड़ना और उसी तरह विनय तथा मृदुता को भी न छोड़ना। मैं स्वयं पत्रकार हूँ और वह भी एक प्रतिष्ठित पत्रकार। मैं १९०४ से यह काम करता आया हूँ तथा मैं मानता हूँ कि यह काम मुझे अच्छी तरह से आता है। कारण, जब मेरा सौ विषयों पर लिखने का इरादा होता है तब मैं एक विषय पर लिखता हूँ, ऐसा मेरा स्वभाव है। अब यदि मैं 'यंग इंडिया' में परस्पर एक दूसरे की, एक-दूसरे को दी गई, गालियाँ और जिस-तिस की शिकायतों को