पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६४५

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भाषण : शामलदास कालेज, भावनगर में ६०९ छापने लगूं तो इस समय उसकी जो प्रतिष्ठा है क्या वह रह सकती है ? 'नवजीवन' में मेरे पास जो कुछ आता है, अगर वह सबका सब प्रकाशित कर दूं तो क्या उसका कोई पाठक रह जायेगा ? इस नियमको लेकर ही मैंने इन दो पत्रोंके लिए कुछ प्रतिष्ठा प्राप्त की है। इस नियममें भी कभी-कभी भूल हो जाती है । इसलिए राजनीतिज्ञों और लेखकोंसे मैं कहता हूँ कि आप कलमको बसमें रखें और आत्माका विकास करें। शब्दका नियन्त्रण कीजिये, आत्मोन्नतिका नहीं । खुशामद भी न करना और क्रोध भी न करना । संयममें खुशामद नहीं है, जबकि क्रोध • तीखा शब्द - • खुशामदसे भी ज्यादा खराब है। खुशामद और क्रोध एक ही वस्तु है - दुर्बलताके दो पक्ष हैं। टेढ़ा पक्ष क्रोध है । दुर्बल व्यक्ति खुशामद करता है अथवा अपनी दुर्बलता ढकने के लिए क्रोध करता है। कोई भी क्रोधी पुरुष यह न माने कि उसने बल प्रदर्शित किया है। बल तो कर्ममें है और कर्मका अर्थ है धर्म-पालन । जगतके हृदय-साम्राज्यका उपभोग करनेवालोंने अपनी इन्द्रियोंको संयमकी अग्निमें भस्मीभूत किया है । आप भी यदि काठियावाड़का उद्धार करना चाहते हैं तो याद रखिए कि आप शान्ति और संयमसे ही उसे साध सकेंगे । राजा अपना काम दण्डके द्वारा करता है । आप अपना काम सेवा और प्रेमसे करें; राजा तथा प्रजा दोनोंपर अपनी सेवा और प्रेमकी ऐसी वर्षा करें कि उससे उत्पन्न काठियावाड़की सुवर्ण वाटिकाको सब लोग देखने के लिए आयें। यदि मुझे आशीर्वाद देनेका अधिकार है तो मेरा आशीर्वाद है और नहीं तो मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा [ शुभ ] दिन तुरन्त आये । [ गुजरातीसे ] नवजीवन, परिशिष्ट, १८-१-१९२५ ४२६. भाषण : शामलदास कालेज, भावनगर में ९ जनवरी, १९२५ मुझे आज विद्यार्थी धर्मपर बोलना है । यह आसान भी है और मुश्किल भी । विद्यार्थियों की स्थितिको हिन्दू धर्म में ब्रह्मचर्यकी स्थिति कहा गया है । ब्रह्मचर्यका सामान्यतः जो अर्थ किया जाता है, शास्त्रोंमें उसका वह अर्थ नहीं है । सामान्य अर्थ संकुचित है। मूल अर्थमें तो ब्रह्मचर्यं विद्यार्थीको स्थितिका ही पर्याय है । ब्रह्मचर्यका अर्थ है हरएक इन्द्रियका संयम । परन्तु उसके द्वारा विद्या प्राप्त करनेके सारे कालका समावेश ब्रह्मचर्य आश्रम में हो जाता है। ब्रह्मचर्यके इस निर्दोष जीवनमें देनेकी बातें कम और लेनेकी ज्यादा हैं । इस दशामें वह माँ-बापसे, शिक्षकोंसे, समाजसे ग्रहण ही करता है । पर यह किसलिए ? इसीलिए कि मौका पड़ने पर वह वापस दिया जाये • चक्रवृद्धि ब्याजके साथ लौटाया जाये। इसीलिए तो समाज ब्रह्मचर्य आश्रमको पोषण प्रदान करता है । ब्रह्मचर्याश्रम और संन्यासाश्रम, दोनोंके कार्य हिन्दू-धर्म में एक-से बताये गये हैं । विद्यार्थीको संन्यासी होनेके लिए इच्छा नहीं करनी पड़ती, बल्कि वह स्वभावतः ही २५-३९ Gandhi Heritage Portal