पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

दीक्षान्त भाषण : गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबादमें ६१९ दूसरी किसी विद्याके सम्बन्धमें रखते हैं, उतनी ही इसके सम्बन्धमें भी रखें। बाकीका सारा समय अन्य विषयोंको दें, इसके खिलाफ मुझे कोई शिकायत नहीं। मैं तो आपसे सिर्फ इतना ही माँगता हूँ कि जो कीजिए, श्रद्धापूर्वक कीजिए, बेगार न टालिए । दूसरा आक्षेप यह है कि मैंने एक समय कहा था कि विद्यापीठको ऐसा पाठ्य- क्रम गढ़ना चाहिए जिससे आपको आजीविका मिले और यहाँ उसीको चलाना चाहिए । यह बात मैं अभी भी कहता हूँ । लेकिन विद्यापीठके लिए और आपके लिए भी यह मुख्य उद्देश्य नहीं है, होना भी नहीं चाहिए। अगर विद्याको आप केवल आजीविका- का साधन मानने लगेंगे तो यह किसी समय आपकी अधोगतिका कारण सिद्ध होगा । विद्याकी जो व्याख्या विद्यापीठने स्वीकार की है, वह यह है कि जो मुक्ति दे, वही विद्या है। इसलिए ऐसे आदर्शवाली संस्थामें केवल आजीविकाको ध्यान में रखकर विद्या ग्रहण करना उचित नहीं । आजीविकाके अनेक साधन हैं। विद्या तो तन, मन और आत्माकी उन्नति के लिए है। जिसके अंग सुघड़ हैं, शरीर सुव्यवस्थित और मजबूत है, जो सख्त गरमी और सर्दी सहन कर सकता है, जिसमें ऐसी प्रबल संकल्प- शक्ति है कि वह निश्चित किया हुआ काम कर सकता है, जो संयमी है, जिसकी आत्मा स्वच्छ है • इतनी स्वच्छ कि वह कह सके कि मैं अपने हृदयका सुक्ष्म स्पंदन भी सुन सकता हूँ और चूंकि आत्माका स्थान हृदय है इसलिए उसका हृदय भी स्वच्छ होना चाहिए -- उसीने सच्ची विद्या सीखी है । ये तीन वस्तुएँ जिसने प्राप्त कर ली हैं उसे आजीविका का पाठ सीखने की जरूरत क्यों होनी चाहिए, आजीविका के लिए चिन्ता क्यों होनी चाहिए ? ऐसे लोगोंको तो विश्वास होना चाहिए कि जिसने दाँत दिये हैं, वह चबाने को भी कुछ देगा ही । मुझसे कहा गया है कि विद्यार्थियोंको घर-संसार चलाना होता है, उन्हें दो-दो तीन-तीन जनोंका पोषण करना होता है । पोषण करना होता हो तो हो; पोषण करना भी चाहिए और उसे करनेमें बहादुरी भी है; लेकिन उपर्युक्त वस्तुओंको साधनेसे ही आजीविका मिल जाती है, आजीविका ढूंढ़ने से नहीं मिलती। आजीविका मिल सके, ऐसी व्यवस्था तो विद्यापीठ आज भी कर रहा है । यदि विद्यापीठ ऐसा आश्वासन दे अथवा यह पत्र लिख दे कि विद्यार्थीको विद्यापीठसे निकलनेपर तुरन्त ही तीन सौ अथवा तीस रुपये वेतन मिलने लगेगा तो यह आपको अपंग बनाना होगा । बादमें आप देश सेवा नहीं कर सकते, तब आपसे पुरुषार्थं भी नहीं होगा । विद्यापीठ तो आपको केवल मुसीबतके आगे टिके रहनेकी, उससे निकल जानेकी शक्ति देता है। वस्तुतः देखा जाये तो विद्यापीठ आपकी कुछ भी नहीं दे सकता; वह तो आपमें जो कुछ होगा, उसीको विकसित कर सकेगा । इसलिए आप आजसे यह मानें कि विद्यापीठमें आकर आपने कुछ खोया नहीं है, कुछ खोनेवाले भी नहीं है । विद्यापीठका और महाविद्यालयका भविष्य क्या है और उन्हें किस मार्गपर ले जाया जाये, महामात्रने मुझसे इसके बारेमें सुझाव देनेके लिए कहा है। इसके बारेमें कुछ भी सुझाव देना मेरी शक्तिके बाहर है। इस वर्ष हिन्दुस्तान में वातावरण क्या स्वरूप धारण करेगा, सो मैं नहीं जानता। मुझे आशाएँ तो बहुत हैं। मैं आशावादी हूँ और मरणपर्यन्त आशावादी रहूँगा । लेकिन इस समय मैं आपके सामने इन Gandhi Heritage Portal