पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६६०

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६२४ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय हो जाये, तो भी हर्ज क्या ? यदि कांग्रेस- जन इस बातका खयाल किये बिना कि वे किस दलके हैं और इस बात से सहमत हैं अथवा नहीं, इसे सफल बनानेके लिए जुटकर कार्य करें तो वह असफलता भी एक गौरवपूर्ण. असफलता होगी । अगर लोगोंका इरादा प्रस्तावके अनुसार काम करनेका नहीं था तो यह कहना भी, जैसा कि हस्ताक्षर - कर्त्ता सज्जनोंने कहा है, गैरमुनासिब है कि बहुत-से लोगोंने सिर्फ एकताके खयालसे उस प्रस्तावके हकमें राय दी थी । एकता इतनी आसानी से हासिल नहीं हो सकती । एकता कोई ऐसी चीज नहीं जो मात्र दिखावेके लिए हो और जिसे कागजपर महज प्रस्तावके रूपमें लिख देनेसे काम चल सकता हो । एकता तो तभी कायम हो सकती है जब प्रस्तावके अनुसार ठोस काम करके दिखाया जाये । विधान सभाओंपर मेरा विश्वास नहीं । पर मेरे दूसरे साथियोंको उनपर विश्वास है, इसलिए मैंने उन्हें कांग्रेसके नामका इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है। पर अब अगर मैं दिल में कुछ महसूस करूँ और मुँहसे कुछ और कहूँ या कलमसे कुछ और लिखूं तो मैं एकतामें सच्चा विश्वास रखनेवाला नहीं, बल्कि पाखण्डी साबित होऊँगा । कौंसिल-प्रवेशका अधिकार देनेवाले प्रस्तावके हक में एक बार राय दे चुकने के बाद मुझे चाहिए कि मैं स्वराज्यवादियोंका भला मनाऊँ। मुझे अपने किसी भी कामसे उनके कार्यक्रमको नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए। यही नहीं, बल्कि जहाँ-कहीं मुझसे हो सके, अपनी पूरी शक्ति के साथ उन्हें मदद भी पहुँचानी चाहिए, और यदि इतने पर भी उन्हें असफलता मिले तो उन्हें यह कह सकनेका मौका नहीं देना चाहिए कि वे इसलिए नाकामयाब हुए कि हमने पहलेसे परस्पर निर्धारित मर्यादाके अन्दर भी उन्हें मदद नहीं दी। फर्ज कीजिए कि अपरिवर्तनवादी किसी भी तरहसे स्वराज्य- वादियोंका काम न बिगाड़ें तो उस हालत में यदि वे असफल भी हों तो वह असफलता - - एक तरह की सफलता ही होगी; क्योंकि तब हमें अपने ध्येयतक पहुँचनेका दूसरा रास्ता मिल जायेगा । ठीक इसी तरह, यदि देशके तमाम दल कताईकी शर्तको सफल बनाने में अपनी पूरी शक्ति लगाकर देखें और फिर भी सफलता न मिले तो हम सब उसे स्पष्ट रूपमें महसूस कर सकेंगे, और अपनी हार कबूल करते हुए सब मिलकर सफलता के लिए कोई और मार्ग निकालने की कोशिश करेंगे; क्योंकि यदि हम सचमुच तुले हुए हों तो हम अवश्य ही असफलताओंके बीचसे अपनी मंजिलतक पहुँचनेका मार्ग पा जायेंगे । कोलाबाके इन सज्जनोंकी कठिनाई है क्या ? वह खुद उन्हीं की पैदा की हुई तो है । अगर खुद उनके जिलेमें कपास पैदा नहीं होती तो वे खरीद लें। कोलाबा मैंचेस्टरकी अपेक्षा बम्बईसे कहीं नजदीक है । क्या उन्हें यह जानकर ताज्जुब न होगा कि मैंचेस्टरके आसपास कपासका एक टेंट भी नहीं फलता, पर वहाँके लोगोंको कपास बाहरसे मँगाने, धुनने और कातनेमें जरा भी दिक्कत महसूस नहीं होती ? मैं कोलाबाके इन मित्रोंको यकीन दिलाता हूँ कि ऐसा करनेमें उन्हें मँचेस्टरके लोगोंके मुकाबले आधी परेशानी भी नहीं उठानी पड़ेगी। उनका दिल बढ़ानेके लिए मैं यह भी कह देता हूँ कि यदि उन्हें कपास मँगाने और धुनने तथा कातनेकी इच्छा न हो तो Gandhi Heritage Porta