पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६६३

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काठियावाड़ राजनीतिक परिषद् ६२७ नहीं करता। मैं यह खुलासा करनेके लिए उत्सुक था कि यद्यपि कातनेका एक राज- नीतिक पहलू है तो भी हरएक कातनेवालेको उसके राजनीतिक पहलूसे सम्बन्ध रखनेकी जरूरत नहीं । यदि राजा लोग और उनके मंत्री मिसाल पेश करनेके लिए और प्रजाके साथ अपने तादात्म्यके चिन्ह-स्वरूप कातें तो मैं उसे ही काफी मानूंगा । काठियावाड़के किसानोंको खुब फुरसत रहती है। लोग गरीब हैं। और यदि राजे-रजवाड़ों और उनके प्रतिनिधियोंके द्वारा कातनेका रिवाज चलाया जाये तो आम लोग भी, जिनपर वे शासन करते हैं, उसे अपना लेंगे और इससे राष्ट्रीय सम्पदामें भरपूर वृद्धि होगी । व्यक्तियोंपर चाहे इस वृद्धिका असर स्पष्ट मालूम न हो, लेकिन लोगोंपर समष्टि- रूपसे उसका असर काफी बड़ा होगा । पाठक यह जानना चाहेंगे कि सर प्रभाशंकरने यह प्रतिज्ञा क्यों और कैसे की थी। वे दर्शककी हैसियतसे विषय समितिमें आमन्त्रित होकर आये थे । कातनेका प्रस्ताव पास हो जानेपर, मैंने सदस्योंको कातनेवालोंमें नाम लिखानेके लिए आमंत्रित किया । मैंने उनसे कहा कि बेलगाँव में दूसरे लोगोंके साथ मैंने भी अपने सिर यह भार लिया था कि पहली मार्चके पहले-पहले, प्रतिमास २००० गज सूत कातनेवाले १०० सदस्य बनाऊँगा; मैंने यह भी कहा कि "अनिच्छुक" लोगों में से दो कातनेवालोंको तैयार करूँगा; मैंने श्रोताओंसे यह भी कहा कि बेलगाँवमें जब मैंने यह बीड़ा उठाया, मुझे आशा थी कि ये १०० सदस्य मुझे काठियावाड़से मिल जायेंगे और इच्छा न होनेपर भी कातनेवाले दो सदस्योंमें एक सर प्रभाशंकर मेरे खयालमें थे। यह सुनते ही सर प्रभाशंकर फौरन खड़े हुए और हर्ष-ध्वनिके बीच बड़े संकल्पके साथ उन्होंने अपना पूर्वोक्त निश्चय प्रकट किया। सर प्रभाशंकरका शिक्षक मुझे ही बनना था । यह लिखते समयतक उन्हें सिर्फ तीन बार अभ्यास कराया गया है। तीसरे ही दिन वे २ घंटे से भी कम समय में ८ नम्बरका एक-सा और अच्छा बटा हुआ ४८ गज सूत कात सके थे। सच बात तो यह है कि पहली बार ही आध घंटेके अभ्याससे वे तार निकालने लगे थे। इसके बाद उन्होंने कहा कि अब चरखे के साथ मुझे कुछ देर अकेले ही जूझने दीजिए । मुझे आशा है कि दूसरे राज्याधिकारी और मंत्री भी सर प्रभाशंकरके इस सुन्दर संकल्पका अनुकरण करेंगे, जो खुद उनके लिए भी और उनके अधीनस्थ प्रजाजनोंके 'लिए भी लाभदायक है । रुईका संग्रह रुईका केन्द्र होनेके कारण भावनगर में उन गरीब कातनेवालोंको, जो आध घंटेकी मजदूरी देनेपर राजी हो सकते हैं, लेकिन जो रुई नहीं दे सकते और न माँग ही सकते हैं, रुई देने के लिए कपास संग्रह करने का भी निश्चय हुआ । उसका नतीजा यह हुआ कि २७५ मनसे ज्यादा रुई इकट्ठी हो गई। दो दिनके माँगनेपर इतनी रुई इकट्ठी हो जानेपर कोई बुरा नहीं । यदि जोश ऐसा ही रहा तो काठियावाड़ में कताई आन्दोलन खूब चल पड़ेगा । [ अंग्रेजीसे ] यंग इंडिया, १५-१-१९२५ Gandhi Heritage Portal