पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/६६४

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४३७. घूमता चक्र पाठक जानते ह कि बड़ो दादा द्विजेन्द्रनाथ ठाकुर मेरे प्रति बहुत स्नेह-भाव रखते हैं । मैं जो भी कहता या करता हूँ, लगभग सभीको वे पसन्द किये बिना नहीं रह पाते। इसलिए पाठकगण मेरे विचारों और मेरी योजनाओंके उनके अनुमोदनको यदि बहुत अधिक महत्त्व न दें तो उनको इसका पूरा-पूरा हक है । लेकिन पाठक देशके प्रति बड़ो दादाके उत्साह और उनकी निष्ठाकी सराहना किये बिना नहीं रह सकते। बड़ो दादा अपने इसी उत्साह और निष्ठाके कारण देशकी राजनीति में आनेवाले नये-नये विचारोंसे अपना सम्पर्क बनाये रहते हैं । इधर हालमें उन्होंने चरखेके बारेमें मुझे यह लिखा है : सिद्धान्तमें तो नहीं, परन्तु व्यवहारमें अत्यन्त अहंमन्य लोगोंका एक मूढ़ विश्वास बन जाता है कि जो काम उनको असाध्य लगता है वह असम्भव है और जो उनको साध्य लगता है वही सम्भव है । नेपोलियनके शत्रु कभी खयाल करते थे कि किसी भी सेनाके लिए शीत ऋतुमें आल्प्स पर्वत पार करना उतना ही असम्भव है, जितना गुब्बारेके सहारे चन्द्रलोककी यात्रा करना; किन्तु नेपोलियनका खयाल इससे भिन्न था। उसकी पैनी दृष्टि देख रही थी कि आल्प्सको पार करना ही इटलीमें प्रवेशका एकमात्र सम्भव साधन है । इसी तरह हमारे देशके अधिकांश लोग समझते हैं कि चरखा चलाना एक ऐसा सीधा-सादा काम है जिससे राजनीतिक तो दूर आर्थिक स्वतन्त्रताकी ओर भी हमारा एक कदमतक आगे बढ़ना बिलकुल असम्भव है; जबकि दूसरी ओर महात्माजी खयाल करते हैं कि हम जिस ध्येयकी प्राप्तिका प्रयत्न कर रहे हैं, उसे केवल इसी एक साधनसे प्राप्त करना सम्भव है । बड़ो दादाने एक पाद-टिप्पणी देते हुए यह भी लिखा है कि शाब्दिक दृष्टिसे चरखा, चक्रका पर्याय है और लाक्षणिक दृष्टिसे घूमते हुए संसार-चक्रका । कबीरके एक भजनमें चरखेका वर्णन उसके इसी लाक्षणिक अर्थमें हुआ है। लेकिन बड़ो दादाके पत्रका सबसे महत्त्वपूर्ण भाग वह है जिसमें इस कठोर सत्यपर जोर दिया गया है कि सांसारिक दृष्टिसे सयाने लोगोंको चरखे द्वारा देशकी वास्तविक प्रगति चाहे जितनी असम्भव जान पड़े, किन्तु उसका केवल यही एक सम्भव उपाय है । देश जो कोई अहम राजनीतिक कदम उठा सकता है, उसको यह चरखा - कार्य ही ठोस आधार प्रदान कर सकता है । [ अंग्रेजीसे ] यंग इंडिया, १५-१-१९२५ Gandhi Heritage Porta