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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रयत्न कर रहा हूँ कि राजनीति धर्मके बिना एक भयानक मनोविनोद या क्रीड़ा-मात्र है, जिसका परिणाम उसमें रत व्यक्तियों और राष्ट्रोंके लिए अहितकर ही होता है।

मगर मैं देखता हूँ कि अपने राजनीतिक जीवनमें ऊपर बताये गये धर्मको शामिल करनेके मेरे प्रयत्नसे मेरे कुछ परम मित्रों और साथियोंको डर लग रहा है। मेरे लिए एक ओर कुआँ और दूसरी ओर खाई है। जहाँ ये मित्र राजनीतिको धर्मके रूपमें चलानेके मेरे प्रयत्नसे डरते हैं वहाँ एक दूसरा दल चाहता है कि अपना कार्यक्षेत्र उन्हीं कामोंतक सीमित रखें जिन्हें वह सामाजिक सेवा समझता है, किन्तु यदि मुझे अपने उद्देश्यपर विश्वास है तो मुझे अपने मार्गपर अडिग रहना चाहिए। मेरा विश्वास है कि वह समय तेजीसे पास आ रहा है जब राजनीतिज्ञ मानवताके धर्मसे डरना बन्द कर देंगे और मानव-हितवादियोंको राजनीतिक जीवन में स्थान मिलेगा जो पूर्ण सेवाके लिए अनिवार्य है। मैं इसी कारण तो सारे भारतका आह्वान कर रहा हूँ कि वह चरखे और खद्दरके सन्देशको अपनाये और हिन्दू, मुसलमान, पारसी, क्रिस्तान, यहूदी आदि जातियोंमें, जो व्यर्थ ही यह सोचती हैं कि एकका ईश्वर दूसरेके ईश्वरसे अलग है, हार्दिक एकता स्थापित करें। मैं इसी कारण यह भी अनुभव करता हूँ कि हिन्दुओंका जन्मके कारण किसी स्त्री या पुरुषको अछूत मानना अधर्म है। ये कार्य मेरी समझमें जितने उच्च प्रकारके मानव-हितके कार्य हैं उतने ही राजनीतिक कार्य भी है। अत: आपके मानपत्रके लिए धन्यवाद देनेका सबसे बढ़िया तरीका यह है कि मैं आपका आह्वान करूँ कि आप इस काममें मेरा साथ दें और मेरी सहायता करें और भारतमें अपना प्रधान निगम कहलाना सार्थक करें।

[अंग्रेजीसे]
बॉम्बे क्रॉनिकल, ३०-८-१९२४

३७. पत्र: मोतीलाल नेहरूको

बम्बई
३० अगस्त,१९२४

प्रिय मोतीलालजी,

श्रीमती नायडूने मेरे नाम लिखा आपका पत्र [१]मुझे कल दिया। मूल पत्र अबतक साबरमती पहुँच गया होगा। पिछले दोनों पत्रोंमें [२]मैं पूरा, अर्थात् जितना कर सकता था उतना, समर्पण कर चुका हूँ।...

इसलिए अब तो आप मुझसे लगभग अपनी ही शर्तोपर अपनी बात मनवा सकते हैं। "लगभग" इसलिए कहा कि कुछ बातें ऐसी हैं जिन्हें मैं अपने जीवन और दुनियाके सभी सम्बन्धोंसे ज्यादा महत्त्व देता हूँ। लेकिन अगर आप मुझे कुछ चीजें

  1. २५ अगस्त, १९२४ का।
  2. देखिए खण्ड २४, पृष्ठ ५४१-४२ तथा ५८९-९०।