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पत्र: मोतीलाल नेहरूको

इच्छापूर्वक और पूरे हृदयसे, अर्थात् यह मानते हुए कि यह देना ठीक है, दें तो मैं यह चाहता हूँ:

हमारे प्रस्तावमें--

(१) विधान सभाओंके बहिष्कार-सहित पूर्ण असहयोगकी नीति और सिद्धान्तमें कांग्रेसका विश्वास दुहराया जाये;

(२) लेकिन १९२५ के अन्ततक विदेशी कपड़े के अलावा और सभी चीजोंसे सम्बन्धित बहिष्कार स्थगित कर दिया जाये;

(३) हर आदमीको कांग्रेसमें शामिल होनेको आमन्त्रित किया जाये;

(४) साम्राज्यके मालके बहिष्कारकी बातको शामिल न किया जाये;

(५) और कांग्रेसके कामको सिर्फ हाथ-कताई और हाथ-बुनी खादी, हिन्दूमुस्लिम एकता और हिन्दुओं द्वारा अस्पृश्यता निवारणतक ही सीमित रखा जाये।

इसका मतलब यह हुआ कि कांग्रेसियोंके रूपमें कांग्रेसियोंका कौंसिलोंसे या बहिष्कारसे कोई सम्बन्ध नहीं रहना चाहिए, लेकिन अगर चाहें तो वे कौंसिलोंमें काम करने और जो दूसरे काम कांग्रेसकी नीतिके विरुद्ध न हों उन्हें करने के लिए अपना स्वतन्त्र संगठन बना सकते हैं। अतः कौंसिलोंके बहिष्कार या इस प्रस्तावके अनुसार स्थगित दूसरे बहिष्कारोंको लागू करनेके लिए कोई संगठन नहीं हो सकता। वर्तमान राष्ट्रीय स्कूलोंको सहायता मिलती रहनी चाहिए और जहाँ सम्भव हो, नये स्कूल खोले जा सकते हैं, लेकिन उनका सरकारसे कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए।

चार आनेकी सदस्यताको समाप्त कर देना चाहिए और उसके स्थानपर जो भी आदमी कांग्रेसका सदस्य बने वह खादी पहने और हर महीने सदस्यताकी शर्तके रूपमें अपने हाथका कता कमसे-कम २,००० गज सूत दे। अलबत्ता वह चाहे तो पूरे वर्षका सूत एक ही साथ दे सकता है।

कांग्रेसको सच्ची और जीवन्त संस्था बनाने का में और कोई उपाय नहीं देखता और चरखेके सिवा भारतके गरीबोंके लिए और कोई आशा भी दिखाई नहीं देती और जबतक हम खुद कताई नहीं करेंगे तबतक उनको प्रेरणा भी नहीं दे सकते।

संविधानमें मैं दूसरे परिवर्तन भी सुझाना चाहता हूँ, लेकिन अभी उनकी चर्चा करनेकी जरूरत नहीं है। उनका उद्देश्य सिर्फ यह है कि काम प्रभावशाली ढंगसे और वेगसे चले। हमें एक ऐसी घोषणा करनी चाहिए कि कार्य-समितियोंको कार्यकारिणी संस्था माना जाये और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीको विचारकर्तृ संस्था माना जाये तथा कमेटीमें सिर्फ वही लोग हों जो कांग्रेसके सम्पूर्ण कार्यक्रमको पूरा करनेके लिए वचनबद्ध हों। लेकिन मेरे प्रस्तावके अधीन कार्य-समितिमें चुने जानेका जितना अधिकार मुझे है उतना ही आपको भी होगा। मेरे कहनेका मतलब यह है कि यदि चार बहिष्कार स्थगित कर दिये जाते हैं तो कौंसिल-प्रवेश या अदालतमें वकालत करना अपने-आपमें इसके लिए प्रतिबन्धक नहीं रह जाता। वास्तवमें किसी भी व्यस्त वकील या कौंसिल-सदस्यके लिए कार्य-समितिमें आना ठीक नहीं होगा, क्योंकि इसके सदस्योंसे कांग्रेस-कार्यक्रमकी तीनों बातोंके लिए पूरा समय देनेकी अपेक्षा की जायेगी।