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भाषण: एक्सेल्सियर थियेटर, बम्बई में

दयाभाव रखें। यदि हम उन तकका तिरस्कार नहीं कर सकते तो फिर जमनादासजीका तिरस्कार किस तरह कर सकते हैं? हमारे यहाँ जब कोई अतिथि आता है तब हम अपने घरके लोगों और इष्ट मित्रोंको दूर बैठाकर उसे आसनपर बिठाते हैं। यदि जमनादास हमारे विरोधी हों तो भी वे हमारे अतिथि हैं। अतः हम उनका तिरस्कार नहीं कर सकते और अगर वे हमारे भाई ही हैं तब तो उनका तिरस्कार करनेकी कोई बात ही नहीं।

आप लोगोंने जमनादासजीका जो अपमान किया, इससे मुझे बड़ा दुःख हुआ था। परन्तु आपके अत्यन्त नम्रताके साथ माफी माँग लेनेसे वह दुःख सुख के रूपमें बदल गया है और यह मुझे बहुत अच्छा लगा है। जिन लोगोंने माफी माँगी है उनका तो कल्याण होगा ही, किन्तु हमारा भी कल्याण होगा जो इस दृश्यके साक्षी हैं। मैं यहाँ विधान सभाकी चर्चा नहीं छेड़ना चाहता। किन्तु भाई जयकरसे माफी माँगकर विनयपूर्वक इतना तो अवश्य कहूँगा कि ऐसे दृश्य हमें विधान सभाओं में नहीं दिखाई दे सकते। इस प्रायश्चित्तमें मुझे सच्चे स्वराज्यकी जड़ दिखाई देती है।

श्री देवधरने [१]यदि मलाबारका जिक्र न किया होता तो भी हर्ज न था, क्योंकि आज हम मलाबारके भाई-बहनों के प्रति आदर भाव प्रदर्शित करनेके लिए ही एकत्र हुए हैं। आप लोगोंने तो यथाशक्ति टिकट खरीदकर उनके लिए धन-संग्रह किया है। श्री देवधरके भाषणका दुहरा हेतु था। उन्होंने इसके अलावा आपसे निःस्वार्थं सेवा भी माँगी है। और मैं इससे सहमत हूँ। 'नवजीवन' और 'यंग इंडिया' के पाठकोंको मालूम है कि मैं तो बच्चोंसे भी कहता हूँ कि जब हमारे सगे भाई-बहन भूखे हों तो तुम क्या करोगे? क्या तुम उन्हें अपने कपड़े और खानेमें से कुछ हिस्सा न दोगे? तुम कम खाना खाओ, कम कपड़े पहनो और बचतकी रकम मलाबारके लोगोंकी सहायता के लिए दो। मैं इस तरहका दान आपसे माँगता हूँ। मुझसे बारबार यह सवाल पूछा जाता है कि इस दानका सद्व्यय होता है या नहीं? यह टीका उचित भी है और अनुचित भी। जहाँ श्री देवधर हों वहाँ अप्रामाणिकता हो ही नहीं सकती। कितनी ही बातोंमें इनके और मेरे विचारोंमें जमीन-आसमानका अन्तर है। इनके कितने ही विचार मुझे पसन्द नहीं हैं। परन्तु इनकी पवित्रताके सम्बन्ध में मुझे जरा भी शक नहीं। मैं जब-जब इनकी गरीब कुटिया में जाता हूँ तब-तब मुझे मालूम होता है कि इसमें आत्माका वास है। ये जंगलोंमें घूमते हैं, धूप-छाँहकी परवाह नहीं करते और खराब आबोहवाको सहन करते हैं---यह सब महज शुद्ध सेवाके लिए। अतः हमें इनके काममें सहायता क्यों न देनी चाहिए?

हाँ, यदि ये चरखेके खिलाफ कुछ कहें तो मैं कहता हूँ, आप इनकी बात बिलकुल न सुनें।

हिन्दुस्तान मुझसे कुछ आशा करता है। वह समझता है कि मैं बेलगाँवमें कोई ऐसा रास्ता बताऊँगा जिससे हम सब एकमत हो जायेंगे अथवा विरोधी विचारोंको

  1. जी० के० देवधर (१८७९-१९३५); भारत सेवक समाज (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी) के सदस्य तथा बाद में उसके अध्यक्ष।