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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेना चाहिए। यदि यह मुमकिन न हो तो उन्हें एक विश्वासपात्र कातनेवाला रख लेना चाहिए और उससे सूत कतवा लेना चाहिए। अकोलाके जो कांग्रेसी कातना नहीं चाहते थे उन्होंने इस श्री मशरूवालाको,[१] जो हाथ-कताईमें बड़ा विश्वास रखते हैं, जितना सूत चाहिए उतना देनेपर राजी करके मुश्किलको हल कर लिया है। इससे सूतकी तादाद और किस्म दोनोंके सम्बन्धमें इतमीनान रहेगा। किसी भी प्रान्तको दूसरे प्रान्तसे हाथ-कता सूत नहीं मँगाना चाहिए।

सूतकी बरबादी

कुम्भकोणम्से एक सज्जन लिखते हैं:

आप जानते ही होंगे कि देशमें आजकल नेताओंका सत्कार सूतकी माला पहनाकर करनेका रिवाज पड़ गया है। हरएक राजनीतिक समारोहोंके अवसरपर सूतकी मालाएँ पहनाई जाती हैं। पर कोई उनको सम्भाल नहीं रखता; और इसलिए बहुतेरा हाथ-कता सूत यों ही बरबाद हो जाता है। नमूनके तौरपर मैंने सूतका एक पार्सल आपकी सेवामें भेजा है। कुम्भकोणम्में हाल ही तमिलनाडुकी जो खिलाफत परिषद् हुई थी, और जिसके सभापति मौ० शौकत अली थे, यह सूत वहींसे उठाया गया है। यदि मैं इस सूतको न सम्भालता तो यह ९६० गज सूत यों ही बरबाद हो जाता। मुझे यकीन है कि इस बार भी परिषदों में इससे कहीं ज्यादा सूत खराब गया होगा। इसलिए निवेदन है कि आप 'यंग इंडिया' द्वारा यह हिदायत दें कि जो मालाएँ बनाई जायें उनकी एक निश्चित तादाद--जैसे, २,००० गज--हो, जिससे कि ये २,००० गजकी मालाएँ बटोर ली जायें और उनका सदुपयोग पहननेवाले नेताको सलाहके अनुसार किया जाये।

सूतकी बरबादीके बारेमें ऊपर जो कुछ लिखा गया है, उसे मैं ठीक मानता हूँ। नेताओंको सूतकी मालाएँ पहनानेका रिवाज अच्छा है, पर मालाएँ सुन्दर होनी चाहिए और उनमें सूत बहुत नहीं लगाया जाना चाहिए। यदि मंशा नेताओंको सूत भेंट करनेका हो, माला पहनानेका नहीं, तो पत्रलेखकके सुझावका पालन अवश्य किया जाना चाहिए और एक ही आकारकी लच्छियाँ भेंट की जानी चाहिए। क्योंकि यदि सूतकी मालाएँ भेंट करनेका रिवाज देशव्यापी हो जाये और उनकी सम्भाल न रखी जाये तो बहुतेरा अच्छा सूत नष्ट हो जाया करेगा, जो यदि बच रहे तो गरीबोंके लिए सस्ती खादी बनाने में काम आ सकता है।

खादीका आदी होना

बंगालके एक अध्यापक लिखते हैं:

मैं एक राष्ट्रीय पाठशालामें अध्यापक हूँ। बेलगाँवमें राष्ट्रीय पाठशालाओंके सम्बन्धमें जो प्रस्ताव पास हुआ है उसने राष्ट्रीय पाठशालाओंके अध्यापकों और

 
  1. किशोरलाल घ० मशरूवाला।