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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पाठशालाएँ हो सकती हैं जिनके संचालकोंका विश्वास सरकारके आश्रय, नियंत्रण या हस्तक्षेपमें न हो और वे खादी या देशी भाषा या हिन्दुस्तानी पढ़ानेकी भी कायल न हों। अगर ऐसी पाठशालाएँ सर्वसाधारणसे सहायता पाती हों या संचालक स्वयं ही इतने धनी हों कि वे उनको चला सकें तो वे जारी क्यों न रहें? कांग्रेसने जो-कुछ किया है वह सिर्फ यही है कि उसने एक सीमा बाँध दी है जिसके अन्दर ही वह शिक्षा-संस्थाओंको सहायता दे सकती है। कांग्रेसके लिए सिवा इसके दूसरी कौनसी बात स्वाभाविक हो सकती है कि वह अपनी संस्थाओंपर वही शर्त लगाय जो उसकी रायमें देशका हित साधन करती हों।

तिलक महाराष्ट्र विश्वविद्यालय

श्री घारपुरे, रजिस्ट्रार, तिलक महाराष्ट्र विश्वविद्यालय, लिखते हैं:

मेरे कई मित्रों और साथियोंने मेरा ध्यान आपके अध्यक्षीय भाषणके २५ पृष्ठपर छपे एक वाक्यकी ओर खींचा है जो उसकी अन्तिम दो पंक्तियोंमें आता है। 'कई प्रान्तोंमें' अपने-अपने राष्ट्रीय विद्यालय और महाविद्यालय है। अकेले गुजरातमें ही एक राष्ट्रीय विश्वविद्यालय चल रहा है, जिसपर १,००,००० रुपया वार्षिक व्यय किया जाता है और उसके नियन्त्रणमें ३ महाविद्यालय और ७० विद्यालय हैं जिनमें ९,००० छात्र पढ़ते हैं।'

इससे एक भ्रम उत्पन्न होता है। यदि आपका आशय यह हो कि किसी दूसरे प्रान्तमें ऐसा विश्वविद्यालय नहीं चल रहा है जिसपर १,००,००० रुपये वार्षिक व्यय होते हों, तो आपका कहना ठीक है। लेकिन लोग इसका अर्थ दूसरी तरहसे कर सकते हैं, अर्थात् वे इसका अर्थ यह लगा सकते हैं कि किसी भी दूसरे प्रान्तमें विश्वविद्यालय नहीं है। खर्चकी बात तो केवल एक विशेषतासूचक वाक्यांश समझी जाती है।

यदि आप अपने पत्र 'यंग इंडिया' के पृष्ठोंमें यथासम्भव शीघ्र इस भ्रमका निराकरण करनेकी कृपा करें, तो मुझे प्रसन्नता होगी। तिलक महाराष्ट्र विश्वविद्यालयपर प्रतिवर्ष ६,००० रुपये खर्च किये जाते हैं, ३ महाविद्यालय और ३० विद्यालय उसके अन्तर्गत आते है, जिनमें २,००० छात्र हैं। वार्षिक व्यय केवल इसलिए कम है कि प्रत्येक महाविद्यालय और विद्यालय अपनी व्यवस्था स्वयं करता है और उसका कोई भार महाविद्यालयपर नहीं पड़ता।

राष्ट्रीय चिकित्सा महाविद्यालयको अभी मान्यता नहीं मिली है; हाँ, इसका प्रयत्न किया जा रहा है। अभी तिलक महाविद्यालयमें ७५ छात्र पढ़ते है जिनपर १५,००० रुपय प्रतिवर्ष व्यय आता है।

मैं समझता था कि मुझे अंग्रेजी काफी अच्छी आती है। श्री धारपुरेने जिस वाक्यकी ओर संकेत किया है वे उसको ठीक सन्दर्भका ध्यान रख कर पढ़ें, तो उसका अर्थ केवल एक ही निकल सकता है और वह यह कि यदि दूसरे प्रान्तोंकी बात छोड़ भी दें, तो अकेले गुजरातमें ही इतना रुपया खर्च किया जाता है और इतने छात्रोंको