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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैंने यह बात सुनी है तबसे मैं यह अनुभव करने लगा हूँ कि आपको वहाँ जानेमें और रहने में कोई फायदा नहीं है। धन और जानके लालचमें पड़कर आप बहुत-कुछ खो रहे हैं।

मुसलमान कभी किसी स्त्रीको भगा ले जाते हैं और उसको मुसलमान बना लेते हैं। मेरी समझमें नहीं आता कि इस तरह वह हिन्दू स्त्री मुसलमान कैसे हो गई। वह 'कुरान' नहीं जानती, कलमा नहीं पढ़ सकती। दुःखकी बात है वह अपने धर्मके विषयमें भी बहुत कम जानती है। ऐसी स्त्री मुसलमान बन सकती है, यह बात मेरी समझमें ही नहीं आती। कोई मेरी स्त्रीको भगा ले जाये और वह कलमा पढ़ ले तो मेरा इस संसारमें जीना ही अशक्य हो जाये। तब या तो मैं आपसे आकर यह कहूँगा कि आप [उसकी रक्षा करनेमें] मेरी सहायता करें या आपसे प्रार्थना करूँगा कि आप उसे फिर हिन्दू धर्ममें ले लें। यदि मैं ऐसा न करूँ तो मैं कापुरुष कहलाऊँगा। मैं उसका पति होनेका दावा नहीं कर सकता। यदि आप इन्सान हों और इन्सान रहना चाहते हो तो आप प्रतिज्ञा करें कि जबतक यह स्थिति नहीं बदलेगी तबतक आप कोहाट वापस नहीं जायेंगे।

मुझे यह कहा गया है कि यदि कोहाटी हिन्दू वापस कोहाट नहीं जायेंगे, तो यह भी सम्भव है कि सरहदी सूबेसे दूसरे हिन्दू भी भाग आयें। मुझे लगता है कि यदि ऐसा हो तो यह ठीक ही होगा। मैं तो कहता हूँ कि आप वहाँ अपनी शक्तिसे रहें अथवा मुसलमानोंसे मित्रता करके रहें; मैं यह नहीं चाहता कि हिन्दू वहाँ कायर बनकर जिन्दगी बितायें। मैं चाहता हूँ कि हिन्दू और मुसलमान दोनों बहादुर बनें। मैं चाहता हूँ कि दोनोंकी शक्ति साथ-साथ बढ़े। मैं यह नहीं सह सकता कि हिन्दुओंकी शक्ति मुसलमानोंका नाश करके बढ़े अथवा मुसलमानोंकी शक्ति हिन्दुओंका नाश करके बढ़े। हिन्दू धर्ममें दूसरेके धर्मका नाश करनेकी शिक्षा नहीं दी गई है।

कल यह तर्क दिया गया था कि हिन्दू स्त्री मुसलमान बनाई जा सकती है; किन्तु यह बात मेरे गले तो नहीं उतरी। मैं इस बातको मुसलमान भाइयोंसे अधिक अच्छी तरह समझना चाहता हूँ। क्या इस्लाममें यह शिक्षा दी गई है कि कोई भी मुसलमान मेरी स्त्रीको भगा ले जा सकता है? मेरी स्त्री यह भी नहीं जानती कि इस्लाम या ईसाई धर्म क्या है। वह हिन्दू घरमें जन्मी है, रामनाम लेती है, 'रामायण' और 'भागवत' पढ़ लेती है। उसने मुसलमान बननेकी बात कभी सोचीतक नहीं है। वह अपने धर्मपर दृढ़ रहती है और वह भी पूरी श्रद्धासे। यदि ऐसी स्त्रीके सम्बन्धमें यह कहा जाये कि उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया है तो इसका क्या अर्थ मानना चाहिए? उसने सोच-समझकर इस्लाम स्वीकार नहीं किया है; इसलिए वह अपने-आपको मुसलमान माननेके लिए तैयार नहीं है। मैं मुसलमान भाइयोंसे बात करना चाहता हूँ कि क्या उनके धर्ममें किसीकी स्त्रीको भगानेकी और मुसलमान बनानेकी शिक्षा दी गई है? मेरे लिए यह असह्य है कि सरहदी सूबेमें रहनेवाली किसी हिन्दू स्त्रीसे जोर-जबरदस्ती की जाये। यदि यह कहा जाये कि उसने इस्लाम स्वीकार कर लिया है तो मैं यह बात माननेके लिए तैयार नहीं हूँ। इसलिए