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भाषण: रावलपिंडीमें

मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि यदि आप अपने धर्मको प्यारा मानते हों तो आप वापस कोहाट न जायें। जबतक वहाँके मुसलमान यह न कहें कि आप इज्जतके साथ आयें, तबतक आप वहाँ न जायें। आप वहाँ जाकर रुपया कमा लें, किन्तु अपना धर्म खोकर रहें तो मेरी दृष्टिमें आपका कमाया हुआ रुपया मिट्टी ही है।

आप अबतक भूखों नहीं मर गये हैं। मैंने दिसम्बरमें आपसे यह भी कहा था कि जिनके हाथ-पैर चल सकते हैं वे भीख अर्थात् दूसरोंसे माँगे हुए अन्नपर जीवित रहें, मैं यह बात बर्दाश्त नहीं कर सकता। यदि मैं आपको इस प्रकार जीवित रहनेकी सलाह दूँ तो मैं गुनहगार बनूँगा। मैं आज भी इसी बातपर दृढ़ हूँ। मैंने इसीलिए कोहाटके शरणार्थियोंके लिए एक पैसा भी नहीं माँगा है। धन संग्रह करूँगा जब मुझे यह मालूम हो जाये कि पैसा किसलिए चाहिए। मैंने देनेवालोंकी कोई सूची नहीं बनाई है। फिर भी यह सच है कि यदि कोई कुछ रुपया देता है तो मैं उसे यहाँ भेज देता हूँ। किन्तु यदि आप लोग मेरी सलाहके अनुसार चलें और जिनके हाथ-पैर हैं वे उनसे कमाकर खायें तो मैं आपको पूरी सहायता देनेका वचन देता हूँ।

मैं आपको साबरमती भी ले जानेके लिए तैयार हूँ। मैं वहाँ आपके रहने और खाने-पीनेकी पूरी व्यवस्था कर दूँगा। मैं पहले आपको खिलाऊँगा तब स्वयं खाऊँगा। किन्तु मैं आपसे नित्य आठ घंटे काम लूँगा। यदि आप श्रम करना चाहते हों तो मैं आपकी सहायता हर तरह करनेके लिए तैयार हूँ। यदि आपमें से कुछ लोग यह कहें कि "हम तो वकील हैं, अतः हमें तो वकीलका धन्धा ही दो" तो मुझसे यह व्यवस्था नहीं हो सकेगी। दो पक्षोंमें लड़ाई करवाके मैं आपको मुकदमे नहीं दिला सकता। इसी प्रकार यदि व्यापारी दस-बीस लाख या दस-बीस हजार रुपये माँगे तो मैं नहीं दे सकूँगा। मैं इतना जरूर कर सकता हूँ कि आपको कोई-न-कोई काम दे दूँ। मैं इसी दृष्टिसे हिन्दुस्तानके लोगोंसे कह रहा हूँ कि प्रत्येक मनुष्य आधा घंटा चरखा चलाये। चरखा श्रमका प्रतीक है। जो चरखा चलाता है वह दूसरा श्रम भी कर लेगा। मेरे पास जमीनका कोई काम नहीं है; किन्तु धुनने, कातने और बुननेका काम पर्याप्त है। इन कामोंसे लाखों लोगोंको रोजी मिल सकती है। मैंने अखबारोंमें पढ़ा है कि मैसूरके महाराजाने भी चरखा चलाना शुरू किया है। आपमें से जो लोग कारीगर हों और जिन्हें अपना काम शुरू करनेके लिए आवश्यक साधनोंकी जरूरत हो, जैसे सुनारीके औजारोंकी, तो उनको जुटाना मेरा कर्तव्य है। जिसका जो धन्धा हो, उसको चलवानेकी व्यवस्था करना भी मेरा कर्तव्य है। मैं इसके लिए भीख माँगनेके लिए तैयार हैं। इसलिए मैं आपसे फिर कहता है कि आप इस प्रकारको सूचियाँ बनायें जिनसे यह मालूम हो कि कितने आदमी किस-किस कामको कर सकते हैं और प्रत्येकके परिवारमें कितने लोग इस प्रकार काम कर सकते हैं और क्या काम कर सकते हैं। बीमार या कमजोर आदमी भी कोई-न-कोई काम कर सकता है। मैं अपनी विधवा बहनसे भी काम लेता हूँ और उसके बाद ही उसका भोजन उसे देता हूँ। वह कहती है कि "हम तो दीवानके बेटे-बेटियाँ हैं।" किन्तु मैं तो यह मानता नहीं। हम तो हिन्दुस्तानके मजदूर हैं। इसलिए मैं

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