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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इससे भिन्न आचरण नहीं कर सकता। एक ही मार्ग है--मैं जिसे खानेके लिए दूँ, उससे काम लूँ। मैं अपनी बहन और पत्नीसे भी ठीक निबट लेता हूँ, इसलिए विधवा बहनोंसे भी निबट लूँगा।

कुछ बातें सुनकर मुझे बहुत शर्म मालूम हुई। मैंने सुना है कि कुछ कोहाटी हिन्दू जुआ खेलते हैं, कुछ एक बार रोटियाँ लेकर दुबारा फिर रोटियाँ माँगते हैं और नहीं मिलती तो झगड़ा करते हैं; यदि अपने पास रजाई होती है तो भी दूसरी माँगते हैं और उसे बेच देते हैं। इससे मुझे बहुत दु:ख होता है। जो-कुछ कोहाटमें हुआ, मैं उसे बर्दाश्त कर सकता हूँ; किन्तु यदि ये सब बातें सच हों तो ये मुझसे बर्दाश्त नहीं हो सकतीं। यदि आप ऐसे ही रहना चाहते हों तब तो आप कोहाट लौट जा सकते हैं और अपना धर्म डुबा सकते हैं। मेरे विचारसे धर्मका अर्थ यह नहीं है। कोई गायत्री पढ़ने-मात्रसे हिन्दू नहीं हो सकता है। मेरी दृष्टिमें केवल वही हिन्दू है जिसके हृदयमें गायत्री सतत अंकित रहती है। कोई 'ग्रन्थसाहब' का पाठ कर लेनेसे सिख नहीं हो जाता। सिख वही है जो 'ग्रन्थसाहब' को सच्चे भावसे हृदयमें धारण करता है। वेद-मन्त्रोंका भलीभाँति गान करनेसे ही कोई आर्यसमाजी नहीं हो जाता। किन्तु जो उन मन्त्रोंको जीवनमें उतारता है, वही सच्चा आर्यसमाजी बनता है। मैं मुसलमानोंसे भी कहता हूँ कि क्या मैं कलमा पढ़ लेनेसे मुसलमान हो सकता हूँ? इसलिए जबसे मैंने आपके विषयमें यह बात सुनी है तबसे मैं बहुत क्षुब्ध हूँ।

यह कलियुग है और ऐसे ही कारणोंसे हमारा अधःपतन हुआ है। आपसे मेरी प्रार्थना है कि आप इस प्रकारका आचरण करके मुझे न लजायें। यदि आपको ऐसा ही करना हो तो आप मुझे तो अलग ही रहने दें; क्योंकि तब मैं आपकी सेवाके योग्य नहीं रहता।

इन स्थितियोंमें आप कोहाट न जायें, इस सम्बन्धमें मालवीयजी महाराज मुझसे सहमत है। मैंने उनको यहाँ आनेका कष्ट नहीं दिया है, क्योंकि केन्द्रीय विधानसभामें बंगाल अध्यादेशके सम्बन्धमें निर्णय किया जा रहा है और वे इस सम्बन्धमें वहाँ व्यस्त हैं। वे आनेके लिए तैयार थे; किन्तु मैंने उनसे कहा कि मैं उनको इस बार कष्ट नहीं देना चाहता। लालाजी भी आज यहाँ आ गये हैं। उन्होंने लाहौरसे फोन किया था। मैंने उनको यहाँ बुला लिया है; किन्तु वे दुर्भाग्यसे बीमार हैं और आज यहाँ नहीं आ सके हैं। मैंने उनको यहाँ रावलपिंडी आनेका कष्ट इसलिए दिया कि यदि हम दोनों एकमत न हों तो आप लोग भ्रमित होंगे। हम तीनोंकी राय एक ही है। इस्लामके सम्बन्धमें मैंने आपसे जो-कुछ कहा है वह उनको नहीं मालूम है। किन्तु जो-कुछ कोहाटमें हुआ है उसके सम्बन्धमें उनकी राय यही बनी है कि वर्तमान स्थितिमें आपके लिए कोहाट जाना अधर्म है। मैंने स्वयं इतना ही और कहा है कि जबतक मुसलमानोंसे कोई समझौता नहीं होता तबतक आपका वहाँ जाना अधर्म है।

मैं यह भी नहीं चाहता कि आपको इस समय जिस प्रकार मुफ्त खाना दिया जाता है, वह जारी रखा जाये। 'गीता' कहती है कि जो मनुष्य यज्ञ नहीं करता