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कोहाटके दंगोंके बारेमें कमाल जिलानीसे जिरह

फिर भी खाता है, वह चोरी करता है। यज्ञके अर्थ कई होते हैं; किन्तु उसका एक अर्थ शरीर-श्रम भी होता है। मैं आप लोगोंसे बात करनेके लिए आया हूँ। आप मुझसे कोई दूसरी बात पूछना चाहते हों तो पूछ सकते हैं। मैं तो यही चाहता हूँ कि जो लोग यहाँ काम कर रहे हैं आप उनसे यहाँ खाना खानेवाले लोगोंके नाम दर्ज कर लेनेको कह दें और यह भी कह दें कि हम लोग यहाँसे जो-कुछ लेंगे उसका दाम श्रम करके चुकायेंगे। आप सब लोगोंको काम ढूंढ़ लेना चाहिए। यदि आप मेरे साथ साबरमती चलें तो मैं आपको वहाँ काम देनेके लिए तैयार हूँ। मेरे मनमें तो यह आता है कि मैं आपके साथ रहकर मेहनत-मजदूरी करूँ। किन्तु आज तो मेरे सम्मुख दूसरा काम पड़ा है। इसलिए मैं आपके साथ नहीं रह सकता। आप सब इकट्ठे बैठकर सलाह कर लें और यदि आपको मेरी बात स्वीकार हो तो आप एक घर किरायेपर ले लें, उसमें खड्डी लगाकर उसपर काम करें। मैं आप लोगोंको उसके लिए पैसा दिलानेके लिए तैयार हूँ। मुझे ऐसे कामके लिए पैसा माँगनेमें तनिक भी लज्जा नहीं आती।

मैं आपसे प्रार्थना करना चाहता था वह कर चुका हूँ। अन्तमें आप जो कुछ पूछना चाहें मैं उसका उत्तर देनेके लिए तैयार हूँ। मैंने आपके सम्बन्धमें जो बात सुनी है वह यदि झूठी हो तो आप मुझे वह भी बतायें। आपको जिन्होंने आश्रय दिया है उनके प्रति भी आपका कर्त्तव्य यही है कि आप कोई-न-कोई काम अपने हाथमें उठा लें।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७

३८. कोहाटके दंगोंके बारेमें कमाल जिलानीसे जिरह [१]

[रावलपिंडी]
६ फरवरी, १९२५

प्रश्न: क्या आप कोहाटके नजदीक रहते हैं?

उत्तर: बिलकुल नजदीक रहता हूँ।

प्रश्न: क्या आप जमींदार हैं?

उत्तर: में जमींदार हूँ। मेरे... में बहुतसे गाँव हैं। इसके अलावा हमारे पूर्वजोंको वहाँ करीब-करीब सभी गाँवों में जमीनें दी गई थीं।

 
  1. कहा जाता है कि कमाल जिलानी तथा अहमद गुलकी की गई जिरहका उल्लेख करते हुए, गांधीजीने यह कहा था: "इस वर्षके दौरान मैंने आज अत्यन्त मूल्यवान् कार्य किया है।...मैंने बहुत वर्षोंके बाद इस तरहकी जिरहका काम अपने हाथमें लिया है। इस समय लगता है कि मैंने जिरह करने में अपना सारा कौशल समाप्त कर दिया है। गवाहोंको तनिक भी यह महसूस नहीं हुआ है कि उनसे जिरह की जा रही है।" देखिए महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७।