प्रश्न: आपका पुस्तिकाके बारेमें क्या खयाल है? उसमें आम हिन्दू जनताका क्या भाग था?
उत्तर: पुस्तिका यहाँ भेजी गई और सनातन धर्म सभाके सदस्योंकी जानकारीमें बेची गई।
प्रश्न: क्या बहुत हिन्दू सनातन धर्म सभाके सदस्य हैं?
उत्तर: मैं उनकी ठीक-ठीक संख्या नहीं जानता।
प्रश्न: क्या आम हिन्दू इसके सदस्य हैं?
उत्तर: जहाँतक मैं खयाल कर सकता हूँ, बहुतसे (गैर सनातनी) हिन्दू उसके सदस्य होंगे। करीब १५ या १६ सदस्य जिनका जिक्र उनके धर्मोन्मादके कारण किया जाता है, इस [सनातनी] वर्गसे ताल्लुक रखते हैं।
प्रश्न: क्या आपने यह सारी पुस्तिका पढ़ी है?
उत्तर: मैने यह सारी ही पढ़ी है।
प्रश्न: क्या इसमें सभी कविताएँ बुरी है?
उत्तर: जो कविता आपत्तिजनक कवितासे पहले दी गई है वह बहुत अच्छी है। बाकी धार्मिक कविताएँ भी अच्छी हैं; लेकिन ग्यारहवीं कविता अत्यन्त आपत्तिजनक है और उसका उद्देश्य मुसलमानोंको भावनाको आघात पहुँचाना है।
प्रश्न: क्या इस कविताकी बहत प्रतियाँ बेची गई थीं?
उत्तर: पुस्तिकाकी प्रतियाँ बहुतसे लोगोंके हाथोंमें देखी गई थीं। जिनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों थे। मैंने इसकी पहली प्रति मौलवी अहमद गुलके [१] हाथमें देखी थी। उसकी दूसरी प्रति एक दूसरे मुसलमानके पास थी।
प्रश्न: हिन्दू कहते हैं कि ३० या ३५ से अधिक प्रतियाँ नही बेची गईं, क्या यह सच है?
उत्तर: हो सकता है कि यह सब सच हो; लेकिन मैं ठीक-ठीक नहीं कह सकता।
प्रश्न: सनातन धर्म सभाके सदस्योंने उस छपी हुई आपत्तिजनक कविताके लिए माफी माँगी थी। क्या यह काफी नहीं था?
उत्तर: शिष्टमण्डलके [२] पेशावरसे लौटनेतक मुझे इस माफीके बारेमें कुछ भी पता नहीं था। मैंने अभीतक माफीनामेका मजमून नहीं देखा है। मैंने सुना है कि मुसलमानोंके खयालसे माफीनामा काफी था।
प्रश्न: क्या आप जानते हैं कि उसमें कमी क्या थी?
उत्तर: उसमें क्या लिखा है यह मैंने नहीं देखा। इसलिए मैं इस बारेमें कुछ नहीं कह सकता।