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३९. कोहाटके दंगोंके बारेमें अहमद गुलसे जिरह [१]

[रावलपिंडी]
६ फरवरी, १९२५

प्रश्न: मौलवी साहब, आपका नाम?

उत्तर: मेरा नाम अहमद गुल है।

प्रश्न: आप क्या काम करते हैं?

उत्तर: में दाँतोंका डाक्टर हूँ।

प्रश्न: आप खिलाफत समितिके मन्त्री कबसे हैं?

उत्तर: १९२२ से।

प्रश्न: आप कोहाटमें कबसे रहते हैं?

उत्तर: मैं वहीं पैदा हुआ था।

प्रश्न: आपके विचारमें कोहाटके दंगोंका क्या कारण है?

उत्तर: मैं कुछ बातों में तो पीर कमाल साहबसे सहमत हूँ, लेकिन कुछमें मेरा उनसे मतभेद है। मेरे विचारमें दंगोंका कारण वह पुस्तिका थी।

प्रश्न: पुस्तिकाको छोड़कर कोई और कारण भी था या नहीं?

उत्तर: एक और घटना भी हुई थी। मेरे जीवन में इस प्रकारके दो ही अवसर आये हैं जबकि मुसलमान बड़ी संख्यामें सरकार के पास गये हैं। एक अवसर तो सरदार माखनसिंहके बेटेके मामलेमें आया था और दूसरा पुस्तिकाके मामलेमें आया। इन अवसरोंके अलावा किसी भी अन्य अवसरपर इस प्रकारकी उत्तेजना नहीं फैली; न तो कभी मुसलमान इकट्ठे हुए और न कभी ऐसा कोई दंगा हुआ।

प्रश्न: क्या आप केवल इन दो घटनाओंको ही दंगोंका कारण मानते हैं?

उत्तर: कुछ आपसी मतभेद भी थे।

प्रश्न: सरदार माखनसिंहके बेटेका मामला क्या था?

उत्तर: लोगोंमें एक आम अफवाह थी कि सरदार माखनसिंहके बेटेका अपने मालीकी औरतसे अनुचित सम्बन्ध है। वह लाहौर चला गया और उसके साथ ही वह मालिन भी चली गई। इससे लोगोंमें बहुत सनसनी फैली। पठान जाति इस तरहके कामको नफरतकी निगाहसे देखती है, चाहे वह किसी मुसलमानने ही क्यों न किया हो। इसीलिए सरकार भी अपराधीको सख्त सजा देती है और चाहे वह मामला दो मुसलमानोंका ही क्यों न हो, लोग उससे उत्तेजित हो जाते हैं। सरदार माखनसिंहके बेटे के मामलेमें सरकारने कोई ध्यान नहीं दिया; यद्यपि इस बारेमें

 
  1. इसकी उपलब्ध प्रति दोषपूर्ण है अत: आवश्यकतानुसार कहीं-कहीं संशोधन करके उसका अनुवाद किया गया है।