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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अन्य जिलों में मुसलमानोंके लिए जो मांस वर्जित है वह बाजारमें बिकता है या लोग उसे लेकर खुलेआम बाजारमें आते-जाते हैं, लेकिन कोहाटमें अबतक ऐसा कभी नहीं हुआ। लेकिन इसके विपरीत जो मांस हिन्दुओंके लिए वर्जित है वह सरहदमें और खासकर कोहाटमें खुले आम बिकता है और काममें लाया जाता है।

प्रश्न: आपने पुस्तिकाकी बात कब सुनी थी?

उत्तर: मुझे इसकी बात २९ अगस्त शुक्रवारको मस्जिदमें मालूम हुई थी।

प्रश्न: आपको वह किसने बताई थी।

उत्तर: यह पुस्तिका मुझे गुलाम अयूब नामके स्वयंसेवकने मस्जिदमें दी थी। वहाँ वह एक बड़ी भीड़को साथ ले कर आया था। भीड़में उसके साथ ऐसे लोग भी थे जिनके कपड़े मस्जिदमें आनेके लिए उपयुक्त नहीं थे। ये लोग इसीलिए मस्जिदके बाहर ही ठहर गये थे।

प्रश्न: स्वयंसेवकने क्या किया?

उतर: उसने मुझे बताया कि इस पुस्तिकाके कारण बाजारमें बहुत हंगामा है और ये लोग आम मुसलमान जनतासे इस बारेमें सलाह लेना चाहते हैं और ऐसा कदम उठाना चाहते हैं, जिससे लोग शान्त किये जा सकें।

प्रश्न: आपने फिर क्या किया?

उतर: मैंने उस पुस्तिकाको हाथ में ले लिया। लोग सब ओरसे मुझसे कह रहे थे कि मैं उस कविताको, जिसे वे पहले भी सुन चुके थे, पश्तोंमें पढ़ कर सुना दूँ, क्योंकि वे यह मालूम करना चाहते थे कि आखिर उसमें क्या बात कही गई है। मैंने मजमेके सामने उसका उल्था पश्तोंमें किया। साथ ही उनके जोश और इरादेको देखते हुए, जिसका मुझे अन्दाज हो रहा था, मैंने उन्हें किसी तरहका फसाद करनेसे रोका और मलाबार, मुल्तान, सहारनपुर और अन्य जगहोंमें हुए दंगोंका जो बुरा नतीजा निकला है उसको याद दिलाई। मैंने उन्हें यह सलाह दी कि अगर वे अपनेको बसमें नहीं रख सकते तो वे इस मामलेमें भी उसी तरह सरकारके पास जायें, जिस तरह वे दूसरे मामलोंमें जाते हैं।

प्रश्न: आपका कहना है कि लोग पहले सुनी बातको फिर सुनना चाहते थे। जब वे उसे पहले ही सुन चुके थे तब वे उसे फिर क्यों सुनना चाहते थे?

उत्तर: मस्जिदमें भीड़ने ऐसा इसलिए कहा था कि उसमें से कुछ लोग तो इसकी बात जानते थे और कुछ नहीं जानते थे।

प्रश्न: लेकिन क्या भीड़ने इसकी बात पहले पहल मस्जिदमें ही सुनी थी?

उत्तर: हाँ।

प्रश्न: इसके बाद क्या हुआ?

उत्तर: इसके बाद वे लोग आपसमें कानाफूसी करते खिलाफत कमेटीके विरुद्ध षड्यन्त्र और साथ ही यह शिकायत करते देखे गये कि खिलाफती लोग धार्मिक मामलों में भी पिछड़ रहे हैं। उन्होंने हमसे चन्देमें हजारों रुपये लिये हैं, लेकिन जब