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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रश्न: जब जीवनदास गिरफ्तार किया गया और पुस्तिकाएँ जलाई गई तब उनकी संख्या कितनी थी?

उत्तर: यह मैं नहीं कह सकता। वे शायद ५०० से ज्यादा होंगी।

प्रश्न: क्या आपको यह बात बताई गई थी कि आपत्तिजनक कविता इसमें से निकाल दी गई है?

उत्तर: इस तरहकी कुछ बात कही तो गई थी।

प्रश्न: जो प्रतियाँ अदालतमें भेजी गई थीं उनमें वह पृष्ठ नहीं था?

उत्तर: कुछ पन्ने अलग दिखाये गये थे।

प्रश्न: क्या उस पुस्तकके ऊपर कृष्णजीकी तस्वीर थी?

उत्तर: हाँ साहब।

प्रश्न: क्या किसी हिन्दूने इसपर आपत्ति की थी?

उत्तर: नहीं।

प्रश्न: क्या किसीने ऐसा कहा था?

उत्तर: सबसे पहले तो मैं ही उस पन्नेको बाहर निकालनेकी कोशिश करता क्योंकि उसपर कोई कविता नहीं थी।

प्रश्न: आप पेशावरके शिष्टमण्डलके बारेमें क्या कहते हैं?

उत्तर: पेशावरका एक शिष्टमण्डल मुझसे ४ सितम्बरको मिला था। उसके बाद खशकिस्मतीसे सैयद सिकन्दरशाह वहाँ आ गये। हम पीर कमाल साहबके पास जा रहे थे। वे हमें रास्तेमें ही मिल गये और हम एक स्थानपर गये जो मेरे घरके पास ही था। वहाँ हमने इस मामलेपर बातचीत की। पेशावरके शिष्टमण्डल तथा इन वोनों सज्जनोंने यथासम्भव मामलेको रफादफा करनेकी कोशिश की। लेकिन लोगोंमें बड़ी उत्तेजना थी, इसलिए इस मामले में जो हलकी शर्ते रखता या नरम रुख अपनाता, लोग उसी पर शक करते थे।

प्रश्न: क्या आपकी बातचीत लोगोंके सामने हुई थी?

उत्तर: उस समय लोग वहाँ आ गये थे और उन्होंने मुझे इतना तंग किया था कि मुझे शिष्टमण्डलसे खानगी बातचीतका मौका ही नहीं मिला। अगर मैं उनकी रायके खिलाफ कुछ करता तो वैसी ही स्थिति उत्पन्न हो जाती जैसी लोगोंने दूसरे राष्ट्रीय नेताओं के विरुद्ध उत्पन्न कर दी थी। मुझे मजबूरन उनका साथ देना पड़ा; क्योंकि अगर मैं भी उनसे अलग हो जाता तो स्थिति गम्भीर होनका बहुत भय था। लेकिन मैं इतना कह सकता हूँ कि मैं उनके साथ रहा इस कारण मुसलमानोंने मेरी सलाह सुनी और उपद्रवोंमें पहल नहीं की।

प्रश्न: क्या उस मजमेमें उस समय हिन्दू भी थे?

उत्तरः नहीं, हिन्दू कोई नहीं था। यह अलग बात है कि वहाँ कोई सिख खड़ा रहा हो क्योंकि जलूस आदिके समय सिख मुसलमानोंका साथ देते थे, इसलिए सिखोंके बारेमें उनका खयाल अच्छा था। वे बिना किसी रुकावटके मुसलमानोंके किसी भी जलसेमें शामिल हो सकते थे।