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काठियावाड़ियोंसे

लगाना छोड़ दें तो हमें अप्रत्यक्ष रूपसे होनेवाला यह हानि-लाभ मालूम हो जायेगा। मैं काठियावाड़के लोगोंसे ऐसे सामूहिक हानि-लाभका ही हिसाब लगानेकी आशा करता हूँ। यदि आज काठियावाड़ ऐसा हिसाब लगाने लगे तो कल समस्त भारत ऐसा ही करेगा। मुझे क्या लाभ है, यदि हम इस प्रकार हिसाब लगायेंगे तो परिणाम बुरा और विनाशकारी होगा। जब हमें 'लोगोंको क्या लाभ होगा?' इसी दृष्टिसे सामूहिक हिसाब लगानेकी टेव पड़ेगी, तभी हमारे देश में लोकहितके कार्य होंगे। यदि सभी लोग अपना व्यक्तिगत लाभ चाहेंगे तो सभीका नारा होगा, किन्तु यदि सभी सबका अर्थात् सामूहिक लाभ देखेंगे तो उससे प्रत्येक व्यक्तिका और समस्त लोकसमुदायका लाभ होगा।

यदि काठियावाड़के लोग इस पद्धतिसे विचार करें तो वे चरखेका चमत्कार तुरन्त समझ जायें और मैं इसी दृष्टिसे एक मासमें किये गये उनके कार्यका हिसाब प्राप्त करनेकी आशा करता हूँ। जिन्होंने सूत कातनेकी प्रतिज्ञा की थी, क्या उन्होंने नित्य सूत काता है? जिनको सूत कातना नहीं आता था, क्या उन्होंने सूत कातना सीख लिया है? लोगोंसे भिक्षाके रूपमें जो कपास देनेकी प्रार्थना की गई थी, क्या वह कपास इकट्ठी कर ली गई है? यदि वह इकट्ठी कर ली गई हो तो क्या उस कोई उपयोग सोच लिया गया है? इस प्रकार अभी कार्यवाहक समितियों और सभी कार्यकर्ताओंको ऐसी कई बातोंका हिसाब देना है।

मैं राजकोटसे भी किये हुए कामका ऐसा ही हिसाब पानेकी आशा करता हूँ। राजकोटमें मुझे मानपत्र देनेकी तैयारियाँ की जा रही हैं। मुझे क्यों मान देना है? किन्तु यदि मान देना उचित ही लगे तो लोग मेरे सम्मुख सूतका ढेर लगाकर और स्वयं खादीसे सज्जित होकर मुझे मान दे सकते हैं। मेरा परितोष शब्दाडम्बरसे तो नहीं हो सकता। मैं काठियावाड़में यह जो दूसरी बार प्रवेश करूँगा, वह केवल खादी और चरखेके प्रचारकी आशासे, अस्पृश्योंकी सेवाके निमित्त और राजा और प्रजाकी सेवाके उद्देश्यसे ही करूँगा।

मुझे राजकोटमें एक राष्ट्रीय शाला खोलनी है। मेरा विश्वास है कि इस शालामें शुद्ध राष्ट्रीय सेवक काम कर रहे होंगे। इस शालाके निमित्त गुजरात प्रान्तीय समितिने खासी बड़ी रकम दी है। इसके लिए माननीय ठाकुर साहबने सस्ते भावमें जमीन दी है। मैं चाहता है कि राजकोटके नागरिक इस शालाके कार्यमें रस लें। वे इस शालाको देखें-भालें, यदि उसके कार्यमें भूलें हों तो उनको सुधारें और यदि उसमें चरित्रवान् अध्यापक कार्य करते हों तो उसमें अपने बालकोंको भेजकर सहायता दें। उचित तो यही है कि इसका खर्च राजकोटके लोग ही उठायें।।

इस बारकी काठियावाड़की यात्रामें बढवान भी सम्मिलित है। मैं वहाँकी राष्ट्रीय शालाके निमित्त कुछ घंटे दूँगा। इस शालाके निमित्त बहुत त्याग किया गया है। मैंने इसकी आलोचना भी बहत सुनी है। कई बार उसपर संकटोंके बादल आये हैं; और बिखर भी गये हैं। बढवानमें खादीका कार्य किया गया है। बढवान मोतीलालकी भूमि है। उसको भाई शिवलालके साहस और धनका लाभ मिला है। मैं बढवानसे बहुत आशा रखता हूँ। मेरा विश्वास है कि इसमें बढवान मुझे निराश न करेगा।

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