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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं यह चाहता हूँ कि सभी स्थानोंमें मेरे मान-सम्मानमें समय नष्ट करनेकी अपेक्षा मुझसे सेवा लेनेका ही विशेष ध्यान रखा जाये। व्यवस्थापकोंसे मेरी विनती है कि वे ऐसी व्यवस्था करें जिससे मेरा और लोगोंका समय व्यर्थके भाषणोंमें नष्ट न हो। क्या मुझे यह माँगनेका अधिकार नहीं है कि सभा जहाँ अनिवार्य हो वहीं की जाये और उसमें सब भाई-बहन खादी पहनकर ही आयें।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-२-१९२५

४२. मैसूरके महाराजा

मसूरके महाराजा साहब चरखा चलाने लगे हैं। जिन लोगोंने कताईको धर्म मान लिया है उन्हें इस समाचारसे प्रसन्नता हुए बिना न रहेगी। संवाददाता यह भी सूचित करते हैं कि यह सर प्रभाशंकर पट्टणीके कातना शुरू करनेका परिणाम है। इन सब उदाहरणोंसे हमें फूल नहीं जाना चाहिए। लेकिन इनसे यह तो सूचित होता ही है कि चरखा चलाने में कितना और कैसा आकर्षण है। फिर बड़े आदमियोंकी मिसालका असर सर्वसाधारणपर भी पड़ता है। मैं मैसूरके महाराजाको धन्यवाद देता हूँ और आशा रखता हूँ कि वे अपने आरम्भ किये कार्यको आजन्म नहीं छोड़ेंगे। यह प्रारम्भ उनके और प्रजाजन दोनोंके लिए कल्याणकारी है। इसका परिणाम आज भले ही कम दिखाई दे, परन्तु मुझे इस विषयमें जरा भी सन्देह नहीं कि अन्तमें वह एक विशाल वृक्षके रूपमें सुशोभित हो जायेगा। सूत-कताई महाराजा और प्रजा दोनोंको जोड़नेवाली सुनहली जंजीर बन जायेगी। इससे इस नियमका पुनरुद्धार होगा कि राजाओंको उपयोगी और प्रजा-पोषक उद्यम करना चाहिए। और यह जानकारी कि गरीबसे-गरीब प्रजाके उद्यमके लिए भी महाराजाके महलमें स्थान है, हमेशा प्रजाजनोंको प्रोत्साहित करती रहेगी एवं इससे यह बात सिद्ध होगी कि राजा और रंकके दरम्यान वस्तुत: 'जाति भेद' नहीं है। पर ऐसे नतीजे थोड़े दिनों उद्यम करनेसे नहीं निकल आया करते। उसके लिए निरन्तर, नियमित और श्रद्धामय उद्यमकी आवश्यकता है।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-२-१९२५