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४३. सच्ची शिक्षा

डाक्टर सुमन्त मेहताका नीचे दिया गया पत्र मेरे हाथमें तो मेरी इस बारकी दिल्ली यात्रामें आया। यात्राके दौरान एक तो पत्र नियमित नहीं मिल पाते; मिलते हैं तो मेरे सहायक उन्हें तभीके-तभी नहीं देख पाते। देखनेपर वे पहले उन पत्रोंको मेरे सामने रखते हैं, जिनपर तुरन्त ध्यान देना आवश्यक हो और फिर मैं उनको भी समय मिलनेपर ही देख पाता हूँ। अगर डा० सुमन्त मेहताका यह पत्र मुझे समयपर मिल जाता तो दीक्षान्त भाषणके [१] अवसरपर मैं इसका ठीक उपयोग कर लेता; किन्तु वह अवसर तो निकल गया। अब मैं उसपर यहाँ चर्चा कर रहा हूँ। पत्र इस प्रकार है: [२]

डाक्टर साहबके इस पत्रका मैं स्वागत करता हूँ। इसमें जो मूल विचार है, आचार्य गिडवानीने उसपर अमल किया था। अर्थात् उन्होंने स्नातकोंको अलग-अलग जगहोंपर समाज-सेवाके लिए भेजा था और उनके साथ सम्पर्क बनाये रखा गया था। यह बात पाठ्यक्रमका अंग नहीं थी, व्यक्तिगत रूपसे और प्रयोगके तौरपर की गयी थी। डाक्टर साहब उसे स्थायी रूप देकर उसे पाठ्यक्रमका एक अंग बना देना चाहते हैं। यह बिलकुल ठीक ही है। इस पत्रसे यह ध्वनि निलकती जान पड़ती है कि डाक्टर साहबकी यह योजना वर्तमान शिक्षा-योजनाकी जगह रखी जानी चाहिए।

मैं तो यह भी पसन्द कर लूँ किन्तु फिर भी महाविद्यालयका वर्तमान कार्यक्रम बिलकुल ही हटा देना आवश्यक नहीं है और यदि आवश्यक हो तो उसे हटा देना सम्भव नहीं है। वर्तमान पाठ्यक्रमको रचनामें विद्यार्थियोंके स्वाभाविक झुकावका ध्यान रखा गया है। और प्रान्तोंके मुकाबलेमें सेवाभाव गुजरातमें देरसे जाग्रत हुआ है। इससे यहाँके हर विद्यार्थीके दिलमें एकाएक सेवाके लिए आवश्यक अध्ययनकी इच्छा नहीं होती। फिर समाज-सेवाके साथ आजीविकाका सवाल भी है। अभी यह विचार प्रधान माना जा रहा है कि विद्याध्ययन आजीविकाके लिए है। अकेली आजीविका ही लक्ष्य होता तो भी क्षम्य समझा जाता; परन्तु विद्याध्ययनके फलस्वरूप वे द्रव्योपार्जन करें, अधिकार पायें, यह विचार भी लोगोंको रहता है। जबतक इस विचारमें परिवर्तन नहीं होता तबतक सिद्धान्त-दृष्टिसे हमारे अध्ययनक्रममें त्रुटि ही रहेगी। उसमें एकाएक परिवर्तन करना मुश्किल मालूम होता है। फिर भी मैं मानता हूँ कि धीरे-धीरे उस विचारको गौणपद देना आवश्यक है और यह नितान्त सम्भाव्य भी है।

 
  1. गुजरात विद्यापीठका।
  2. पत्र यहाँ नहीं दिया जा रहा है। डा० मेहताने इसमें गुजरात विद्यापीठके शिक्षण कार्यक्रमके प्रति असन्तोष व्यक्त करते हुए राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्त्ता तैयार करनेसे सम्बन्धित प्रशिक्षणपर जोर दिया था और उस दिशामें कुछ निश्चित सुझाव भी रखे थे।