पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दृष्टिसे बहुत कामकी नहीं है। और कोहाटके शरणार्थी दूसरी श्रेणीमें आते हैं। मैंने अपने विचार पण्डित मालवीयजीतक पहुँचा दिये हैं। वही प्रारम्भसे उनके पथ-प्रदर्शक रहे हैं और उन्हें उन्हींकी सलाहके अनुसार चलना चाहिए। लालाजी [१] पिण्डी आये थे, पर बदकिस्मतीसे वे बीमार हो गये। मेरी अपनी राय जो बहुत विचारके बाद मैंने कायम की है, मौ० शौकतअलीके पास भेजे गये मेरे वक्तव्यमें व्यक्त है। मगर यह बात तो मैं पहले ही से कबूल कर लेता हूँ कि उससे उन लोगोंको कुछ भी तसल्ली न मिलेगी। मुझ तो अब एक टूटी नाव ही समझिए। वह भरोसा करने लायक नहीं है।

परन्तु इस बारेमें कि वे जबतक कोहाटके बाहर हैं, क्या करें, मैं उन्हें निःसंकोच सलाह दे सकता हूँ। मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि हट्टे-कट्टे और मजबूत हाथ-पैर रखनेवाले लोगोंका दानकी रकमोंपर बसर करना अपने सत्वको गँवाना है। उन्हें चाहिए कि वे खुद अथवा वहाँके लोगोंकी मददसे कुछ-न-कुछ काम अपने लिए ढूँढ़ लें। मैंने उन्हें धुनने, कातने और बुननेतक का काम सुझाया है। पर वे कोई भी अपनी पसन्दका अथवा जो उन्हें दिया जाये ऐसा काम ले सकते हैं। मेरे कहनेका भाव यह है कि किसी भी स्त्री-पुरुषको, जो काम करनेकी ताकत रखता है, दानके सहारे पेट नहीं भरना चाहिए। एक सुव्यवस्थित राज्यमें काम करनेकी इच्छा रखनेवाले हरएक शख्सके लिए काफी काम हमेशा होना चाहिए। आश्रित लोगोंको, जबतक कि राष्ट्र उनका भरण-पोषण कर रहा है, अपने एक-एक मिनटका ठीक हिसाब देना चाहिए। "निठल्ले आदमीको शैतानी तो सूझेगी ही" यह महज किसी स्कूली किताबकी कड़ी नहीं है। इसमें एक बड़ा सत्य है और हर शख्स उसका अनुभव कर सकता है। गरीब, अमीर, उच्च-नीच सबपर एक-सी मुसीबत छाई है--सब मुसीबतके मारे हुए एक दूसरेके संगाती हो गये हैं। धनी और खुशहाल लोगोंको चाहिए कि वे खुद आगे बढ़कर अच्छी तरह मेहनत करके दूसरोंके लिए मिसाल पेश करें, फिर चाहे वे मुफ्त राशन न लेते हों। यदि किसी राष्ट्रके लोग कोई ऐसा हुनर या धन्धा जानते हों जो गाढ़े वक्त उन्हें सहारा दे तो इससे देशको कितना बड़ा लाभ होगा? यदि ये शरणार्थी भाई धुनना, बुनना या कातना जानते होते तो इनके दिन कहीं बेहतर और इज्जतके साथ कटते। उस हालतमें शरणार्थियोंका वह शिविर मधुमक्खीके छत्तेकी तरह चहल-पहलका केन्द्र बन गया होता और उसे अरसेतक चलाना आसान होता। यदि वे लोग तत्काल न लौटनेका निश्चय करें, तो अब भी वक्त निकल नहीं गया है। अनाज बाँटना गलती है। व्यवस्थापक लोगोंके लिए ऐसा करने में आसानी है, पर इससे शरणार्थियोंमें बड़ी बेतरतीबी फैलती है और इसमें अन्न भी ज्यादा बरबाद होता है। उन्हें चाहिए कि वे अपनेको सिपाहियोंकी तरह अनुशासित करेंनियमसे उठे, नियमसे नहायें, धोयें, नियमसे ईश्वर-भजन करें, नियमसे भोजन करें, नियमसे काम करें और नियमसे सोयें। कोई वजह नहीं मालूम होती कि उनके बीच 'रामायण' का अथवा और किसी धर्म-पुस्तकका पाठ आदि क्यों न हो। इन सबके

 
  1. लाला लाजपत राय।