पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/१५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

५१. तार : प्रभाशंकर पट्टणीको

साबरमती
१० फरवरी, १९२५

सर प्रभाशंकर पट्टणी
भावनगर

आपका पत्र पाकर प्रसन्नता हुई। धन्यवाद। आशा है आप अब स्वस्थ हो गये होंगे।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ३१९१) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : महेश पट्टणी

५२. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको

माघ बदी २ [१० फरवरी, १९२५][१]

सुज्ञ भाईश्री,

मैं कल रात रावलपिण्डीसे वापस आया हूँ। आपका पत्र मुझे आज मिला। मैं इसकी राह ही देख रहा था। तार द्वारा कृतज्ञता व्यक्त किये बिना जी नहीं माना। पत्र-लेखकपर रोष न करें। मैं आपको उसका नाम आदि भी बतानेके विषयमें सोचूँगा। आप किसी भी पत्रको गोपनीय नहीं समझते यह पढ़कर तो मुझे मानव-जातिपर और भी अधिक अभिमान हुआ है। मेरा गर्व घटा है। मैं तो यही समझता था कि ऐसा तो एक मैं ही होऊँगा। आप तो मुझसे ऊँचे उठ गये हैं, क्योंकि आप ऐसे वातावरणमें रहते हैं जिसमें व्यक्तिगत जीवनको प्रकट करना कठिन होता है। यदि लेखक कोई षड्यन्त्री या दुर्जन होता तो मैं आपको उसके पत्रमें से कुछ भी न लिखता और अपने मनपर भी कतई कोई असर न पड़ने देता। किन्तु लेखक सज्जन है, विवेकी है, संयमी है और विद्वान् है। उसे आपसे कोई द्वेष कदापि नहीं हो सकता; किन्तु उससे यह भूल कैसे हो गई यह बात मैं समझ सकता हूँ। मैं उसको आपके पत्रकी प्रतिलिपि भेज रहा हूँ। [२] इससे उसका उपकार ही होगा। वह एसे निर्मल मनका मनष्य है कि यदि वह आपके पास आकर आपसे क्षमा याचना भी कर ले तो मुझे आश्चर्य न होगा। मैने अच्छा किया जो आपको पत्र लिख

 
  1. गांधीजी रावलपिंडीसे साबरमती ९ फरवरी, १९२५ को लौटे थे।
  2. देखिए अगला शीर्षक और उसकी पाद-टिप्पणी भी।