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भाषण: सत्याग्रह आश्रम, साबरमतीमें

दिया। आप अपने पिछले दोषोंको स्मरण करते हैं; किन्तु इन दोषोंसे मुक्त कौन रहा होगा? मैं तीन बार पतनसे बचा हूँ, किन्तु अपने पुरुषार्थसे नहीं, बल्कि अपनी अपढ़ माँके प्रतापसे। उसने अपने बेटेको प्रतिज्ञा रूपी सूतसे बाँध लिया था, इससे उसकी रक्षा हो गई।

मैं १५ तारीखको राजकोट पहुँचूँगा। हमारा वहाँ मिलना सम्भव होगा? या फिर किसी दूसरी जगह?

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१९६) से।

सौजन्य: महेश पट्टणी

५३. पत्र: फूलचन्द शाहको

माघ बदी २ [१० फरवरी, १९२५]

भाईश्री फूलचन्द,

तुम्हारे पत्रका परिणाम [१] साथ प्रेषित है। मूल पत्र मैंने अपने पास रख लिया है। यदि तुम्हें अब भी कुछ शंका हो तो मुझे बताना। यदि तुम्हारी शंका निवृत्त हो गई हो तो भी लिखना। अभी अधिक लिखनेके लिए समय नहीं है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८६७) से।

सौजन्य: शारदाबहन शाह

५४. भाषण: सत्याग्रह आश्रम साबरमतीमें

१० फरवरी, १९२५

जिस मनुष्यको अपने बिस्तरके नीचे साँप होनेका सन्देह हो जाता है वह अपने बिस्तरको जोरसे झाड़ता है, कमरेको झाड़ता है, धो भी डालता है। मेरी हालत उसी मनुष्य जैसी हो गई है। कोहाटकी स्थितिके सम्बन्धमें जो बात मुझे मालूम नहीं थी, अब मालूम हुई है। मैं आपके सम्मुख इस बातकी चर्चा इसलिए करता हूँ कि इसका सम्बन्ध धर्मसे है। हम सबको सचेत हो जाना है। सचेत हो जाना है, इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें कोई खास कदम उठाना है; बल्कि यह है कि हमें मानसिक दृष्टिसे और हार्दिक दृष्टिसे तैयार हो जाना है। हमें और भी अधिक शुद्ध होनेकी आवश्यकता है।

 
  1. देखिए "पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको", १०-२-१९२५ से पूर्वकी पाद टिप्पणी।