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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उपरोक्त बात कह चुकनेपर गांधीजीने कोहाटमें मुसलमान बनाये गये हिन्दुओंकी [१] संख्याका उल्लेख किया और कहा:

सम्भव है यह संख्या अन्यत्र छोटी समझी जाये; किन्तु जिस क्षेत्रमें मुसलमानोंकी संख्या मुश्किलसे १५,००० है उसमें यह भयंकर मानी जायेगी। यहाँ हिन्दुओंमें जागृति फैली। उनकी जागृतिको मुसलमान सहन न कर सके और जो लोग बैर निकालनेका मौका ढूँढ़ रहे थे उन्हें उक्त पुस्तिकाके रूपमें बहाना मिल गया। यदि यही एक कारण होता तो वे इस पुस्तिकाके प्रकाशकको गिरफ्तार करा सकते थे। वे उसे स्वयं कुचल देते और चाहते तो पुस्तिकासे सम्बन्धित अन्य लोगोंको भी कुचल देते। किन्तु वहाँ तो पूरी जातिपर ही अत्याचार किया गया। इसका कारण गहरा होना चाहिए। यह कारण अचानक ही मेरे हाथ लग गया। धर्म-परिवर्तनके सम्बन्धमें मुसलमानोंने सब बातें साफ-साफ कह सुनाई। किन्तु उनकी इस प्रवृत्तिसे मुझे बहुत चोट पहुँची। यदि ३० करोड़ हिन्दू धर्म-पुस्तकोंके अध्ययन और सोचविचारके बाद मुसलमान हो जायें तो मुझे कुछ भी दुःख न होगा। तब मैं अकेला ही हिन्दू बना रहूँगा। और इस प्रकार हिन्दुत्वके गौरवको बढ़ाऊँगा अथवा यह कहें कि हिन्दुत्वके अमरत्वका साक्षी बनकर रहूँगा और कहूँगा कि ये सब हिन्दू हिन्दुत्वके तेजको सहन न कर सकनेके कारण मुसलमान हो गये हैं। किन्तु वहाँ तो यह हुआ कि हिन्दू लोभ या भयके कारण मुसलमान बन गये। यह स्थिति सहन नहीं की जा सकती। मैं यह बात आपको दृढ़ बनानेके लिए कह रहा हूँ जिससे आप अपने धर्मपर आरूढ़ रहें। इसके बावजूद मेरी अहिंसावृत्तिमें, प्रेम भावनामें और मुसलमानोंके प्रति मेरे सद्भावमें कोई अन्तर नहीं आयेगा। मैं तो उनमें जितनी अधिक कमजोरियाँ देखू़ँगा उनकी उतनी ही अधिक सेवा करूँगा। मेरा प्रेमभाव तो अवश्य ही कायम रहेगा। किन्तु प्रेमकी भाषा बदल जायेगी। वह पहलेसे कठोर हो गई है और अभी अधिक कठोर होगी--ऐसे ही जैसे अंग्रेजोंके प्रति मेरी भाषा कठोर होती जा रही है। केवल इतना ही अन्तर होगा। आज आपको जाग्रत और सावधान करना ही मेरा हेतु है। मैं आपको जाग्रत इसलिए करता हूँ कि किसी अवसरपर आपके ऊपर भी ऐसा संकट आ सकता है। यदि आश्रममें से किसी बालक या बालिकाका अपहरण किया जाये तो आप मेरे सिद्धान्तोंका स्थूल अर्थ करके खड़े-खड़े देखते न रह जायें। आत्मशुद्धिका निश्चय अपने-आपमें बलदायक है। जिसका हृदय शुद्ध और पवित्र है उसको शरीर-बल बढ़ानेकी आवश्यकता नहीं है। उसका शरीर तो अपने आप सशक्त हो जाता है। और तब केवल निश्चय ही पर्याप्त होता है। सोनेसे पूर्व राम-नाम लेना चाहिए, यह मेरा निश्चय है। इसलिए राम-नाम लिये बिना मझे कभी नींद ही नहीं आती। यदि आ जाती है तो मैं नींदमें करवट बदलते समय राम-नाम लेता है और मेरे राम मुझे अपने पास खड़े दिखाई देते हैं। यही बात सभी निश्चयोंपर लागू होती है।

आश्रममें तो संकट आनेपर एक बालकको भी डरना नहीं है। उसके पास आत्मबल नहीं है तो नख तो है। [इसके बाद उन्होंने कहा,] हम नखोंको इसलिए

 
  1. देखिए "कोहाटके दंगोंके बारे में कमाल जिलानीसे जिरह", ६ फरवरी, १९२५।