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५६. पत्र: रामेश्वरदास बिड़लाको

साबरमती
माघ कृष्ण ४ [११ फरवरी, १९२५][१]

भाई रामेश्वरदासजी,

आपका पत्र मीला। जमनालालजी [२] आजकल यहां हैं। उन्होंने मुझे खबर दी है कि रु० १०,००० उनकी पेढी पर मील गये हैं। उसका व्यय अंत्यज सेवामें करूंगा।

आपका,
मोहनदास गांधी

[पुनश्च:]

आपका स्वास्थ्य अच्छा है जानकर आनन्द हुआ।

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६१०४) से।

सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला

५७. भाषण: अंकलावमें

११ फरवरी, १९२५

स्वराज्य वही कहा जा सकता है जिसमें हमारे गरीबसे-गरीब भाई भी सुखसे रह सकें। अगर लोगोंको भूखसे मरनेकी नौबत आती है तो उसके लिए हम लोग, जिन्हें कभी अन्नका अभाव नहीं हुआ, उत्तरदायी है। इस गाँवमें सौ साल पहले जो बहनें रहती थीं, वे सूत कातती थीं और भाई सूत कातते या कपड़ा बुनते थे।

धारालाओंमें दुर्व्यसन हैं। वे शराब पीते हैं और चोरी करते हैं। जबतक यह सब होता है तबतक धर्मकी रक्षा नहीं हो सकती। दुर्भाग्यसे यहाँके हिन्दू और मुसलमानोंमें भी अनबन है। हमें अपना धर्म प्रिय होना चाहिए; किन्तु यदि अस्पृश्यता हिन्दू धर्मका अंग हो तो मेरे लिए यह धर्म निकम्मा है। जो मनुष्य मैलसे अपवित्र हो गया हो वह स्नान करके शुद्ध हो जाता है किन्तु यदि हम उसे फिर भी अस्पृश्य मानें तो यह पाप है। हिन्दुस्तानके लोग संसारके लिए ढेढ़ और भंगी है। मनुष्य जैसा

 
  1. पत्रपर डाकखानेकी मुहर ११ फरवरी, १९२५ की है पर १९२५ में माघ कृष्ण चतुर्थी १२ फरवरीको पड़ी थी। पत्र सम्भवत: माघ कृष्ण ३ को लिखा गया होगा।
  2. जमनालाल बजाज।