पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/१५९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२९
भाषण: भादरनमें

अस्पृश्यताको हिन्दू धर्मका कलंक मानते हों तो आप इस विषयमें मेरा समर्थन करें कि जो बाड़ हमें अन्त्यज भाइयोंसे जुदा कर रही है, निर्मूल हो जाये। [१]

मैं यह नहीं कहता कि आप बाड़को अभी तोड़ डालें या सभाके काममें व्यवधान करके कुछ करें। मैं तो आपको सम्मति लेना चाहता हूँ। क्या आप चाहते हैं कि यह बाड़ न रहे और अन्त्यज भाई-बहन हमारे साथ आकर बैठे? [२] आपने मुझे अभिनन्दन-पत्र दिया है। आपने जिस चौकठेमें मढ़वाकर जिस कागजपर अथवा खादीपर छापकर अभिनन्दन-पत्र दिया उसका मेरे लिए कोई मूल्य नहीं है, अथवा उतना ही है जितना आप खुद अपने आचरणसे साबित करेंगे। पर अभी आपने इस बाड़को तोड़कर मेरा जो अभिनन्दन किया है, वह मेरे हृदयमें हमेशा अंकित रहेगा। ऐसा ही अभिनन्दन-पत्र मैं अपने हिन्दु भाई-बहनोंसे चाहता हूँ। आप यदि मझे थोड़ाबहुत सूत लाकर दे देंगे, मेरे सामने तरह तरहके फल-फूल और मेवे लाकर रख देंगे, या अन्त्यज बालिकाके हाथसे कुंकुम-तिलक करायेंगे (जैसा कि यहाँ कराया गया) तो इससे मुझे खुशी नहीं हो सकती। ये चीजें तो मुझे चाहे जहाँ मिल जायेंगी; पर अभी आपने जो चीज दी है उसके लिए तो प्रेमकी जंजीर दरकार है। और मैं इस प्रेमकी जंजीरके सिवा आपसे कुछ नहीं चाहता। क्योंकि प्रेम अहिंसाका अंग है। प्रेममें अहिंसाका समावेश हो जाता है।

सनातनी भाइयोंसे मेरा यह कहना है कि वे यह न माने कि मैं हिन्दू-समाजको आघात पहुँचाना चाहता हूँ। मैं खुद अपनेको सनातनी गिनता हूँ। मैं जानता हूँ कि मेरा दावा बहुत कम भाई-बहन कुबूल करते होंगे--पर मेरा यह दावा है और रहेगा। मैं तो कई बार कह चुका हूँ कि आज नहीं तो मेरी मृत्युके बाद समाज इस बातको जरूर कुबूल करेगा कि गांधी सनातनी हिन्दू था। सनातनी' के मानी हैं 'प्राचीन'। मेरे भाव प्राचीन है--अर्थात ये भाव मझे प्राचीनसे-प्राचीन ग्रंथों में दिखाई देते है और उन्हें मैं अपने जीवनमें उतारनेकी कोशिश कर रहा हूँ। इसी कारण मैं मानता हूँ कि मेरा सनातनी होनेका दावा बिलकुल ठीक है। शास्त्रोंकी कथाको रोचक बना-बनाकर प्रस्तुत करनेवालोंको मैं सनातनी नहीं कहता। सनातनी तो वही है जिसकी रग-रगमें हिन्दू धर्म व्याप्त हो। इस हिन्दू धर्मका वर्णन भगवान् शंकरने[३] एक ही वाक्यमें कर दिया है--'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या'। दूसरे ऋषियोंने कहा है 'सत्यसे बढ़कर दूसरा धर्म नहीं।' और अन्योंने कहा है कि अहिंसा ही हिन्दू धर्म है। इन तीनमें से आप चाहे किसी सूत्रको ले लीजिए, उसमें आपको हिन्दू धर्मका रहस्य मिल जायेगा। ये तीन सूत्र क्या है, मानों हिन्दू धर्मशास्त्रोंको मथकर निकाला उनका नवनीत ही है। धर्मका अनुयायी, सनातनधर्मका दावा करनेवाला मैं किसी भी शख्सके दिलको कदापि चोट नहीं पहुँचाना चाहूँगा। मैं तो सिर्फ इतना ही


२६-९
 
  1. ये शब्द मुँहसे निकले ही थे कि कुछ लोग सभासे उठकर शान्तिके साथ बासकी टट्टियोंके बन्द छोड़ने लगे।
  2. बहुतेरे हाथ ऊपर उठे, सिर्फ एक हाथ खिलाफ उठा; और अन्त्यजोंको सबके साथ बैठा दिया गया।
  3. आद्द शंकराचार्य।