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६१. टिप्पणियाँ

बिहारका इरादा

बिहारके एक सज्जनके पत्रसे मैं नीचे लिखी बातें प्रकाशित करता हूँ: [१]

मैं आशा करता हूँ कि अन्य प्रान्त भी अपना-अपना कार्यक्रम बना लेने में देर न लगायेंगे। मैं जितनी जल्दी हो सके बिहार जाना चाहता हूँ। पर मेरा जाना-आना मेरे हाथकी बात नहीं है। जहाँ तकदीर ले जाती है, मुझे वहीं जाना पड़ता है। इसलिए पहलेसे वचन दे देना व्यर्थ है।

कानपुरमें

डा० अब्दुस्समद लिखते हैं: [२]

मैंने इसकी ताईदके लिए डा० मुरारीलालको नहीं लिखा, क्योंकि डाक्टर अब्दुस्समदका वक्तव्य खुद ही तटस्थ और निर्दोष जान पड़ता है। यदि डा० मुरारीलालका वक्तव्य इससे भिन्न होगा तो मैं उसे खुशीसे प्रकाशित करूँगा। झगड़े तो व्यवस्थितसेव्यवस्थित समाजोंमें भी हो जाते हैं। पर झगड़ेके बाद दोनों तरफके लोगोंने जिस सद्भावसे काम लिया वह सराहनीय है। अब रही कुछ आर्य-समाजियोंपर लगाये गये इल्जामकी बात, सो मैं नहीं कह सकता, वे कहाँतक उसे कबूल करेंगे। मैं आशा ही कर सकता हूँ कि कानपुरके सभी समाजोंके लोग स्वयं अधिकसे-अधिक संयम और उपद्रवी लोगोंपर पूरा अंकुश रखनेका भरसक प्रयत्न करेंगे एवं अपनेसे भिन्न धर्म, मत या राजनैतिक विचार रखनेवाले प्रतिस्पधियोंके प्रति उदारता बरतनेके लिए सदा तैयार रहेंगे।

एक मूक सेवक

चटगाँवसे एक सज्जन एक मूक-सेवकके कामके विषयमें इस तरह लिखते हैं: [३]

श्रीयुत कालीशंकर चक्रवर्ती चटगाँवके एक मूक और अथक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने हाल ही में चरखेके प्रत्यक्ष प्रयोगकी व्यवस्था की है। . . . वे रोज सुबह अपना बड़ा चरखा लेकर चार परिवारोंमें जाते हैं। वहीं बैठकर चरखा कातते हुए उन्हें सिखाते

 
  1. यही नहीं दिया जा रहा है। पत्रमें बिहार प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके विभिन्न उत्पादन केन्द्रोंके कामकी तफसील दी गई थी और बताया गया था कि प्रान्तीय समिति उतनेसे ही सन्तुष्ट नहीं है; उसका इरादा प्रतिवर्ष कमसे-कम ५ लाख रुपयोंकी खादी तैयार करने अर्थात् वर्तमान उत्पादनको तिगुना करनेका है। साथ ही उसमें गांधीजीको वहाँ आनेके लिए आमन्त्रित किया गयाथा।
  2. पत्र नहीं दिया गया है। इसमें २-२-१९२५ को कानपुरमें हिन्दू मुसलमानोंके बीच जो झगड़ा हुआ था समाचारपत्रोंमें प्रकाशित उसके विवरणको भ्रमपूर्ण बताते हुए स्थानीय कांग्रेसके अध्यक्ष डा० मुरारीलालले पत्र-लेखक द्वारा दिये गये तथ्यों के सत्य होनेके बारेमें पूछ लेनेके लिए भी कहा गया।
  3. अंशतः उद्धृत।